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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
Abos नाम
महिमा मंडित-मणि
-श्रीचन्द सराना 'सरस' जीवन महासागर की महिमा मंडित मणि है, भव-सागर से तारक तरल देव-तरणि है। शान्ति–सौख्य – सद्भाग्य-सद्गुणों की सरणि है, पुण्य-पराग-प्रवाल प्रभासित पुष्पवती श्रमणी हैं। महिला की महिमा जिनके आदर्शों से मंडित है, श्रमणी की शोभा जिनके ससंयम से स्यन्दित है। बहु आयामी प्रतिभा जिनकी, प्रज्ञा की पंडित है, उन पुष्पवती भगिनी श्रमणी के चरण देव वंदित है।
पु ष्पा ष्ट क
- कंवरचन्द्र जैन बोथरा, [मंडी गीदड़बाहा पंजाब] E जिन शासन का हैं शृंगार
झूठा है सब मेरा-तेरा | महासती श्री पुष्पवती
मोह मान का तोडो घेरा अद्भुत करती धर्म प्रचार
प्रभु-चरणों में लाओ डेरा । महासती श्री पुष्पवती ॥१॥
ऐसे देती मधुर विचार तजकर भरे हुये भंडारे महासती श्री पुष्पवती ॥ ५॥ नजकर परिजन प्यारे सारे
क्रोध काम के चोर उचक्के पंच महाव्रत जिनने धारे
चौरासी में देते धक्के गई जगत को ठोकर मार
उनके खूब छुड़ाती छक्के महासती श्री पुष्पवती ॥२॥
जैनधर्म की पहरेदार जनता को सन्मार्ग दिखाने
महासती श्री पुष्पवती ॥६॥ लोभ क्षोम छल छद्म छुडाने
महिलाओं में ज्ञान भक्ति लख प्रेम प्यार का पाठ पढ़ाने
नवयुवकों में नव जागृति लख भाषण करती अमृत धार
हर इक में ही आत्म शक्ति लख महासती श्री पुष्पवती ॥ ३ ॥
होती हर्षित अपरंपार दुनियां वालों! जागो-जागो महासती श्री पुष्पवती ॥ ७ ॥ आलस निद्रा गफलत त्यागो
"कंवरचन्द" इतना ही लिखता दूर भूत भय भय से भागो
इन-सा त्याग बहत कम दिखता रही शेरनी-सी ललकार
कौन सामने इनके टिकता महासती श्री पुष्पवती ।। ४ ।।
गहन गुणों की हैं भण्डार महासती श्री पुष्पवती ॥८॥
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१३ ० | प्रथम खण्ड : शुभ कामना : अभिनन्दन
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