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हजारों-हजार विशेषताएँ हैं । उन असीम विशेषताओं को ससीम शब्दों में अभिव्यक्त करना बहुत हो कठिन है । आपका चिन्तन गहरा है, आपकी वाणी में मधुरता और ओज है। आपके प्रवचनों में सुप्त सात्विक संस्कारों को उबुद्ध कर जन-जीवन में सत्य, शील, सेवा सदाचार की पावन प्रेरणा है । आपके जीवन में भक्ति, ज्ञान और कर्मयोग का अद्भुत समन्वय है।
आपके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है समर्पण । जन-जीवन में सुख-शान्ति का सरसब्ज बाग लहलहाए, स्नेह सद्भावना के सरस सुमन खिले इसके लिए आप प्रतिपल-प्रतिक्षण प्रयास करती रहती हैं । आपका विश्वास आदान में नहीं प्रदान में है, ग्रहण में नहीं समर्पण में है । तथापि जन-जन की श्रद्धा और भक्ति का पुनीत प्रतीक अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पित करने का उपक्रम श्रद्धालुओं के लिए आत्मतोष एवं आह्लाद का विषय है।
यों तो अभिनन्दन ग्रन्थ समर्पण एक सम्माननीय परम्परा बन गई है। इसमें अभिनन्दनीय व्यक्ति एक प्रतीक के रूप में रहता है । उस प्रतीक के परिपार्श्व में हम समस्त सम सामयिक कला, साहित्य, संस्कृति समाज एवं अन्य विधाओं को उपस्थापित करते हैं । इस प्रकार जो एक ग्रन्थ निर्मित होता है वह अभिनन्दनीय की परम्परा और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने में सक्षम होता है । इस प्रकार के ग्रन्थों में अभिनन्दनीय व्यक्तित्व की गुण गौरव गाथा का गान तो कम होता है किन्तु एक उच्चस्तरीय मौलिक चिन्तन धारा का सुन्दर सरस प्रवाह हमारे समक्ष आता है। साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी का अभिनन्दन ग्रन्थ भी इसी परम्परा का प्रतीक है।
साध्वी रत्न श्री पुष्पवतीजी के प्रति अनन्य भक्ति, श्रद्धा और सद्भावना रखने वाले अनेक श्रमण-श्रमणियाँ तथा सद्गृहस्थों की उत्कट भावना थी कि आपश्री के अभिनन्दन को माध्यम बनाकर इस प्रकार का ग्रन्थ समर्पण होना चाहिए। जिसमें हजारों श्रद्धालुओं को श्रद्धाभिव्यंजना का दुर्लभ अवसर प्राप्त होगा। और साथ ही उसके माध्यम से एक स्थाई साहित्यिक सम्पदा का निर्माण भी होगा। उनकी यह मनोभिलाषा मूर्तिमन्त हो रही है, प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वारा ।
अभिनन्दन ग्रन्थ के आयोजन की प्रस्तुत प्रक्रिया में मेरा स्वयं का भी दुहरा मानसिक सम्बन्ध जुड़ा हुआ था। पहली बात साध्वी पुष्पवतीजी मेरी ज्येष्ठ भगिनी हैं । गृहस्थाश्रम में उनका अपार स्नेह और सद्भावनाएँ मुझे मिली । मेरे से पहले उन्होंने आहती दीक्षा ग्रहण की। मेरे साहित्यिक व्यक्तित्वनिर्माण में भी उनका प्रत्यक्ष और परोक्ष असीम योगदान रहा है। उपकारी के प्रति कृतज्ञ भावना व्यक्त करना,मेरा सहज स्वभाव है । दूसरी बात सन्तों के अनेक अभिनन्दन ग्रन्थ निकले हैं और निकल रहे हैं। पर साध्वियों का अभिनन्दन ग्रन्थ इसके पूर्व नहीं निकला है। जब मैंने अभिनन्दन ग्रन्थ निकालने का निर्णय लिया और उसकी रूपरेखा मूर्धन्य मनीषियों के पास और अन्य व्यक्तियों के पास पहुँची तो उसकी दुहरी प्रतिक्रिया हई। कुछ व्यक्तियों को साध्वी का अभिनन्दन ग्रन्थ निकालना पसन्द नहीं आया, और उन्होंने मुझे अपनी प्रतिक्रिया भी सूचित की तो दूसरी ओर जैन समाज के प्रज्ञा पुरुष विद्वद्रत्न श्री दलसुख भाई जी मालवणिया विद्यावारिधि डॉ० महेन्द्र सागरजी प्रचंडिया आदि अनेक मूर्धन्य मनीषियों ने मेरे साहस की मक्त कंठ से प्रशंसा की और लिखा कि "आपने प्रथम पहल कर अपने साहस का परिचय दिया है। श्रमणी वर्ग का भी उतना ही महत्त्व और आदर है । समाज में उसकी गरिमा बढ़े यह आवश्यक है। आपने यह आयोजन कर श्रमणी वर्ग का जो ऐतिहासिक महत्त्व जन-जन के समक्ष प्रस्तुत करने का उपक्रम किया है, एतदर्थ हार्दिक बधाई !" मेरे नम्र निवेदन पर मूर्धन्य मनीषियों ने अपना अनमोल सहयोग प्रदान
आदिवचन
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