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कर अपने स्नेह और सद्भावना का परिचय दिया । मुझे इसकी हार्दिक प्रसन्नता है कि मैं एक असीम आत्मतृप्ति का अनुभव कर रहा हूँ ।
इस प्रसंग पर परम श्रद्धास्पद आचार्य सम्राट राष्ट्रसंत श्री आनन्द ऋषिजी म० मेरे परम उपकारी सद्गुरुवर्य उपाध्याय श्री पुष्कर मुनिजी म० के असीम कृपा अनुग्रह का स्मरण करता हूँ। जिनके आशीर्वाद और मार्गदर्शन से ही मैं अपनी जीवन यात्रा को गतिमान बना रहा हूँ। साथ ही पूज्यनीया स्वर्गीया मातेश्वरी श्री प्रभावतीजी म० का भी पुण्य स्मरण इस प्रसंग पर हुए बिना नहीं रहता । उनका उपकार मेरे जीवन के कण-कण में 'पयसि घृतं यथा' की भांति व्याप्त है ।
श्री दिनेश मुनि ने मेरे नार्गदर्शन में प्रस्तुत ग्रन्थ को सम्पन्न करने के लिए पूर्ण प्रयास किया है, एतदर्थ साधुवाद, मुझे विश्वास है कि प्रस्तुत अभिनन्दन ग्रन्थ से जहाँ हमारे श्रमणी वर्ग की गरिमा का दर्शन उजागर होगा वहाँ जैन दर्शन, साहित्य इस प्रकार 'एका क्रिया व्यर्थकरी प्रसिद्धा' की उक्ति चारितार्थ होगी । संस्कृति तथा योग आदि विधाओं पर भी मननीय सामग्री प्राप्त कर पाठक वर्ग को संतुष्टि अनुभव होगी ।
मैं
पुनः अतीव आत्म-तोष की अनुभूति करता हुआ, त्याग- सेवामूर्ति साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी का हार्दिक अभिवादन करता है ।
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-- उपाचार्य देवेन्द्र सुनि
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आदिवचन
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