________________
साध्वारत्नपुष्पवता अभिनन्दन ग्रन्थ
प्रकाश पुन्ज
-जवाहरलाल विनायकिया सूर्य स्वयं प्रकाशित है इसीलिए वह दूसरों को र्षण केन्द्र है । चारों ओर उनकी विद्वता की धाक है प्रकाश देता है फूल में स्वयं गंध है । तभी वह दूसरों तो उनके उज्ज्वल चरित्र का समादर है । श्रद्धालु को सौरभ प्रदान करता है । इसी तरह सन्त और आपको अपना मार्ग दर्शक मानते हैं । सती वृन्द स्वयं प्रकाशशील होते हैं स्वयं सुरभित आपने अहंता और ममता प्रगाढ़ के बन्धनों को होते हैं इसलिए वे दूसरों को भी ज्ञान का दिव्य तोड दिया है त्याग-तप और वैराग्य की अमर प्रकाश व संयम की सुमधुर सौरभ प्रदान करते है। ज्योति आपमें जगमगा रही है । और अद्भुत आक
सद्गुरुणी महासती पुष्पवतीजी के जीवन की र्षण शक्ति है आपमें । | यह विशेषता है कि उन्होंने स्वयं ने अहिंसा, संयम इस पावन प्रसंग पर मैं उस श्रद्धा के प्रकाश पुंज । और तप की ऊँची साधना की हैं। इसीलिए वे संसार के चरणों में अपने श्रद्धा सुमन समर्पित करते हुए
को भी समता, नम्रता, स्नेह और सद्भावना का अपने आपको धन्य अनुभव कर रहा हूँ। पाठ पढ़ाती हैं। उनका विचार समन्वित आचार और आचार समन्वित विचार जन-जन का आक
संकल्प के धनी
-केसरीमल मोहनलाल साकरिया, कोशबा संकल्प और विकल्प ये दो शब्द हैं। पर दोनों आज भी हजारों-हजार साधक उनके पवित्र मैं बड़ा अन्तर है । संकल्प मानव को उत्थान की जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते हैं । मैं भी आपके ओर ले जाता है और विकल्प पतन की ओर। सम्पर्क में आया। जब आप राजस्थान से विहार कर सामान्य व्यक्ति विकल्प के भंवर जाल में फंस जाता गजरात में पधारी तब मैंने तीन-चार दिन तक है जिससे उनके मन में असमाधि बढ़ती है। विकल्प
ध बढ़ता है। विकल्प विहार में आपकी सेवा की । आप हमारे यहाँ का परित्याग कर सन्त संकल्प शक्ति से समाधि की पधारी उस निकट परिचय में मुझे आपके जीवन से ओर अपने कदम बढ़ाते हैं। जिससे उनके जीवन में शरिणापा
अत्यधिक प्रेरणा प्राप्त है। मेरा परम सौभाग्य है | आनन्द का महासागर अठखेलियाँ करता है।
गिर अठखालया करता है। कि मझे इस पावन प्रसंग पर श्रद्धा--समन समर्पित परम श्रद्धेय सद्गुरुणीजी श्री पुष्पवतीजी इस करने का अवसर प्राप्त हआ है। मेरी यही हादिक युग की एक महान साधिका हैं वे अपने संकल्प शक्ति कामना है कि महासतीजी का जीवन हमें सदा-सर्वदा से भोग को छोड़कर योग की ओर बढ़ी और आज प्रेरणा देते रहे। एक अध्यात्मयोगिनी बन गई।
पुष्प-पूक्ति कलियां
"] अहिंसा चरित्र का एक अंग है । साधक के चरित्र की जो व्याख्या की गई है, उसमें निवृत्ति और प्रवृत्ति दोनों को बराबर का स्थान दिया गया है।
संकल्प के धनी ११३
www.jainelibre