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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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प्रेरणा स्रोत
-खुमानसिंह कागरेचा ___ अध्यात्म जीवन के अनासक्ति, संयम और त्याग व्यक्तित्त्व और मधुरवाणी से झकझोर कर सजग | ये तीन अंग है । जिस साधक के जीवन में ये तीनों और सावधान करते हैं।
धर्म मनसा, वाचा और कायेण मूर्तरूप ग्रहण करता महासती श्री पुष्पवतीजी इसी प्रकार की तपी है वह संतपुरुष कहलाता है । सन्त पुरुष ही समाज तपाई साध्वी है। उनके विचार उदार हैं और और राष्ट्र के लिए आदर्श और प्रेरणा स्रोत होते हैं। आचार पावन और पवित्र है। उनकी वाणी मधुर
साध्वीरत्न महासती श्री पुष्पवतीजी एक ऐसी और प्रिय हैं। उन्होंने स्वयं ज्ञान की साधना की ही अद्भुत अध्यात्मयागिणा सता है जिनका अध्यात्म और दसरों को खलकर ज्ञान का दान दिया। धर्म साधना से भौतिक भक्ति के युग में हजारों व्यक्तियों ।
दर्शन, व्याकरण, न्याय, आगम के आप प्रकाण्ड में एक जीवन ज्योति समुत्पन्न की है। वे स्थानक- पण्डित हैं। संस्कृत प्राकत अपभ्रश जैसी प्राचीन वासी समाज की एक तपस्वीनी प्रतिभाशाली साध्वी
भाषाओं के भी विद्वान हैं। आपकी भाषण कला है। साथ ही धुरन्धर विद्वान और परम चिन्तनशीला
सभी को मंत्रमुग्ध करने वाली है। आप साध्वी हैं । वे अपनी सयम, साधना, त्याग और सम्पन्न हैं। दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के सनहरे अवसर वराग्य,ज्ञान आर पारुष के बल पर महान बनी है। पर हमारी यही मंगल कामना है कि आपका उन जैसा तेजस्वी व्यक्तित्व और एकनिष्ठ साधक
पर सानिध्य और आपकी छत्र-छाया हमारे पर सदा
और आपकी त्रकिसी भी समाज और राष्ट्र में वर्षों के पश्चात हुआ
। करते हैं और प्रसुप्त हुए समाज राष्ट्र और जनचेतना को अपने जाज्वल्यमान प्रदीप्त एवं ओजपूर्ण विलक्षण व्यक्तित्त्व की धनीः महासती श्री पुष्पवतीजी
-हरकचन्द पालरेचा, (अध्यक्षः श्री वर्धमान जैन स्वाध्याय संघ-समदड़ी) नीले आकाश के आंगन में असंख्य तारिकाएँ प्रतिदिन दृष्टिगोचर होती है। उन सभी में अधिकांश मन्द-मन्द टिमटिमाती रहती है, जबकि कतिपय तारिकाएँ अपनी विशिष्ट आभा से दर्शकगणों को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर लेती है।
भारतवर्ष की पावन पुण्य धरा अनादि-अनन्त काल से धर्म प्रधान तपोभूमि रही है । श्रमण संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाले अनेक महापुरुषों का यहाँ पर प्रादुर्भाव हुआ। जिन्होंने अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, संयम, क्षमा आदि का उद्घोष किया। उनकी इस तपःपूत वाणी को श्रवण कर अनेक नरनारियों ने अपने को मोह रूपी निद्रा से जागृत किया और संयम-मार्ग की ओर अपने पद चिन्हों को गतिशील किया। उन्होंने जन-जन के अन्तर्ह दय में वीतराग वाणी को पहुंचाया। महापुरुषों के साधनामय चरण चिन्ह साधकों के पथ के प्रदीप बनकर मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। उनकी पावन ज्योति उस पथ पर बढ़ने वाले हर राही के लिए एक प्रेरणा, एक सम्बल बनकर सदा सर्वदा आगे से आगे बढ़ने का साहस भरती रहती है । महापुरुषों के चरित्र-ग्रन्थों को पढ़ने का यहीं तो शुभ प्रतिफल है । उनके जीवन
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११४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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