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साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
2000
जग में जीवन श्रेष्ठ वही, जो फूलों सा मुस्काता है । अपने गुण सौरभ से जग के, कण-कण को महकाता है ॥ भारत की पावन - पुण्य धरा अनेक सन्त और सतियों की जन्म स्थली रही है । जिन्होंने अपनी तपःपूत वाणी से जन-जन के जीवन में अभिनव चेतना का संचार किया। मोह-माया में उलझी हुई आत्माओं को सन्मार्ग प्रदान किया ।
हम हैं खुश नसीब
संयम, सदाचार, दया, लज्जा, ब्रह्मचर्य आदि अद्वितीय गुणों को धारणकर मानव में पौरुष को प्रदीप्त किया । वे अनन्तकाल से आत्मा की उलझी हुई गुत्थियों को इस प्रकार सुलझाती हैं, जो देखते ही बनता है । इनका व्यक्तित्व और कृतित्त्व आदर्श है ।
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जीवन तो सभी प्राणी जीते हैं, पर जीनें की कला विरले व्यक्तियों ही में मिलती है : जीवन जीने की एक शैली और एक तरीका है जो अपने आपको खपाता है, वही महान् बनता है । गुणों की गुरुता के
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जीवन की आधा र
-श्रीमती
फूल बन कर महक. तुझको जमाना जाने । तेरी भीनी खुशबू को अपना बेगाना जाने ।। दही का मंथन करने से नवनीत प्राप्त होता हैं और जीवन का मंथन करने से अनुभव का अमृत मिलता है । नवनीत दही का सार है तो अनुभव जीवन का सार है । महापुरुषों का जीवन निराला होता है । उस जीवन में अनेक प्रकार के मीठे और कड़वे अनुभव होते हैं । और उन कड़वे - मीठे
'जैन (दिल्ली)
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पुष्या
कारण ही व्यक्ति की महत्ता है छोटा-सा अंकुश मदोन्मत्त हाथी को नियन्त्रित कर लेता है । वैसे ही छोटा-सा सद्गुण व्यक्तित्व को निखार देता है ।
परम विदुषी साध्वीरत्न ऐसी ही विशिष्ट साध्वी हैं जिनका जीवन परोपकार के लिए समर्पित हैं जो स्वयं कष्ट सहनकर दूसरों का उद्धार और समुद्धार करती हैं । जिनका जीवन अगरबत्ती की तर सुगन्धित है | जो विकट संकट की घडियों में भी सदा मुस्कराता रहता है। आप एक ओजस्वी और तेजस्विनी साध्वी हैं । आपने अपनी निर्मल वाणी से जन जीवन में अभिनव चेतना का संचार किया । आपकी वाणी के रस का पान कर वे आपके और जिनवाणी के भक्त बन जाते हैं । इसलिए कवि ने ठीक ही कहा है
दुर्लभ हैं दर्शन आपके, आप किसको नसीब होते हैं ? आप जिनके करीब होते हैं, वे बड़े खुश नसीब होते हैं ?
- श्री ज्ञानचन्द तातेड, दिल्ली अनुभवों को महापुरुष सहज रूप से ग्रहण करता है । न मीठे अनुभवों के प्रति उसके मन में अनुराग होता है और न कड़वे के प्रति द्व ेष ही होता, वह तो समभावी साधक होता है । परम विदुषी साध्वी रत्न महासती पुष्पवतीजी अनुभव अमृत सम्पन्न महाश्रमणी हैं ।
महासतीजी ने अपने साधना काल के पचास वसन्तों में बहुत कुछ देखा है, अनुभव किया है ।
जन-जीवन की आधार | ६५
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