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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
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सद्गुण हैं उनकी सरलता, सौम्यता और आत्मीयता आप अपने पावन जीवन को तप, त्याग और पूर्ण सद् व्यवहार की मधुर स्मृतियाँ आज भी मुझे संयम की आलोकमय गरिमा प्रदान करती हैं । गद्गद् कर देती हैं। कितने मधुर हैं। महासतीजी आपका व्यक्तित्व अद्भुत है, वह हिमालय की तरह का जीवन वस्तुतः उनके नाम के अनुरूप हैं। उनमें विराट् है, गंगा की तरह पवित्र है, गुलाब के फूल सद्गुणों की सौरभ इतनी अधिक है कि जो उनके की तरह सुगन्धित है, कमल की तरह निलिप्त है। सम्पर्क में आता है उसका तनाव समाप्त हो जाता चन्द्र सा निर्मल हैं। आपका आत्म पराक्रम दीप है और वह ताजगी का अनुभव करता है । वे सद्- शिखा की तरह ज्योतिर्मान है। आपके तेजोदीप्त गुणी है, सेवाभावी हैं मधुर भाषी हैं, वक्ता, लेखक मुख मुद्रा पर अन्तर का अपूर्व उल्लास और आत्म और कवयित्री हैं। अध्ययनशीलता और जिज्ञासा तुष्टी की पवित्र छवि अंकित है। आपकी आँखों में वृत्ती में उनकी प्रतिभा की तेजस्विता में चार चाँद असीम ममता, करुणा और वात्सल्य को समुज्ज्वल लगा दिये हैं। राजस्थान की इस विदुषी सुविश्रुत आभा सदा प्रस्फुटित होती है। आपके तपः पूत साध्वी रत्न का अभिनन्दन की मंगलबेला में मेरा शरीर से आध्यात्मिक स्फूति, समता, सेवा सहिष्णुता हादिक अभिनन्दन !
की किरणें चारों ओर विकीर्ण होती हुई दिखलायी तुम सलामत रहो हजार वर्ष ।
देती है प्रथम दर्शन में ही दर्शक आकर्षित और प्रभाहर वर्ष के दिन हों पचास हजार ॥ वित हो जाता है। आपकी जादू भरी ओजस्विनी
मधुर वाणी को सुनकर मन्त्र मुग्ध हो जाता है । हम
अभिनन्दन और अभिवन्दन की बेला में आपके भावना के सुमन
चिरायु की मंगल कामना करते हैं । कवि के शब्दों -विकास जैन दिल्ली
तुम हमारे हो सदा, हम तुम्हारे हैं, kstedesteste stedestestoskestestestostese deseste stedese state sedeosteste stastestosteskole
भावना के सुमन, सब आज वारे हैं ।
कह रहा है नित्य धरती का, यह कण-कण, .. जीवन अनन्त गुणात्मक है। गुणों का विकास
तुम जीओ इतने बरस, जितने चाँद सितारे हैं। ही व्यक्तित्व की महत्ता का आधार है । जिसमें गुणों की प्रधानता है वह महान् है और जिसमें गुणों की अल्पता है वह सामान्य है। महासती पुष्पवतीजी महाराज का व्यक्तित्व महान् है क्योंकि वे साधारण व्यक्ति को भी महान् बनाने में दक्ष हैं।
पुष्प सूक्ति कलियाँ_ महासती जी का व्यक्तित्व बहमखी है। वे ओर जहाँ अध्यात्म साधना में तल्लीन हैं तो दूसरी असत्य से किसी स्थायी लाभ की प्राप्ति ओर सती समुदाय पर अनुशासन भी करती है नहीं होती, यह तो बहुत ही घाटे का सौदा है। तीसरी ओर वे जन-जन की समस्याओं को समाहित
। मनुष्य में अन्य गुण चाहे जितनी मात्रा में करने में तत्पर हैं । तो चौथी ओर स्वाध्याय अध्य
हो, वह चाहे जितना दान, पुण्य, ध्यान, अध्ययन, यन और शिक्षा प्रसार के लिए प्रबल प्रयास करती।
: जप आदि करता हो, किन्तु अगर उसके जीवन में हुई दृष्टिगोचर होती है। जहाँ वे आगम के गम्भीर
__ सत्य नहीं है, तो ये सब निरर्थक व निष्फल हैं। रहस्यों को सुलझाती है वहाँ वे प्राचीन गली सडी परम्पराओं का उन्मूलन करने के लिए कटिबद्ध है।
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६४ | प्रथम खण्ड : शुभकामना अभिनन्दन :
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