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साध्वारत्न पुष्पवता भिनन्दन ग्रन्थ
प्रबल थी। फलस्वरूप उन्होंने परिवारिकजनों को तेजस्वी सन्त और सतियां हुई है। जिनकी प्रतिभा सूचना देकर दीक्षा ग्रहण कर ली । माता की आज्ञा में तेजस्विता है, चिन्तन की गम्भीरता है और चरित्र होने से अन्य कोई पारिवारिकजन रुकावट नहीं की उत्कृष्टता है। भारत में ही नहीं विश्व में डाल सका । दीक्षा लेने पर सून्दर कुमारी महासती उनका नाम चमक रहा है। पुष्पवतीजी के नाम से विश्रुत हुईं। उन्होंने दीक्षा उनके दीक्षा लेने के पश्चात् मैं भी उदयपुर से लेने के पश्चात् विविध भाषाओं का अध्ययन पाली गोद आ गया। और पाली में ही रहकर किया।
अपना सांसारिक जीवन आनन्द के साथ व्यतीत कर विक्रम सं० १९९७ में मेरे भतीजे धन्नालाल ने रहा हूँ। मैंने अनेकों बार भोजाईजी महाराज के भी महास्थविर श्री ताराचन्द जी म. व उपाध्याय और भतीजी म० के दर्शन किये हैं, उनके प्रवचन श्री पुष्कर मुनिजी म. के पास आर्हती दीक्षा ग्रहण सुने हैं। उनसे वार्तालाप किया है । भोजाई जी म० की। और धन्नालाल आज श्री देवेन्द्र मुनिजी के का तो तीन वर्ष पूर्व स्वर्गवास हो गया। मेरी नाम से वित्रत है और श्रमण संघ के उपाचार्य पद भतीजी महाराज महासती श्री पुष्पवतीजी दीक्षा से समलंकृत हैं। विक्रम सं० १९६८ में मेरी भोजाई के पचास वसन्त पारकर इक्कावनवें वर्ष में प्रवेश श्री तीज कुंवरबाई ने दीक्षा ग्रहण की और वे महा- करने जा रही हैं। इस मंगलबेला में मैं अपनी ओर सती प्रभावतीजी के नाम से प्रसिद्ध हुई । इस प्रकार से और अपने परिवार की ओर से अनन्त-अनन्त तीनों ने संयम मार्ग स्वीकार कर हमारे परिवार श्रद्धा समर्पित करता हूँ। और यह मंगल कामना की गौरव गरिमा में चार चाँद लगाये हैं। तीनों ने करता हूँ कि वे सदा स्वस्थ रहें। और हमारे कुल जिनशासन की प्रबल प्रभावना की है। आज हमें को, हमारे धर्म को सदा दीपाते रहें । इन पर सात्विक गौरव है हमारे परिवार में ऐसे
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नन्नाकर
अध्यात्म साधना की सफल साधिका
-आनन्द स्वरूप जैन (गुडगांव)
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भारतीय संस्कृति कृषि प्रधान ही नहीं ऋषि राजस्थान प्रान्त जो रूढ़ी चुस्त कहा जाता है,पुरानी प्रधान संस्कृति है। यहाँ पर सत्ता, सम्पत्ति, वैभव परम्परा का पुरोधा है वह पर एक साध्वी का श्रद्धा | और ऐश्वर्य साधक के चरणों में नत होते रहे हैं। लुओंद्वारा सार्वजनिक अभिनंद नआयोजित हो रहा है
यहाँ का इतिहास इस बात का साक्ष्य है कि जीवन महासतीजी की सुदीर्घ दीक्षा पर्याय के पचास बसन्त
का लक्ष्य सत्ता और ऐश्वर्य नहीं अपितु साधना और पार करने के उपलक्ष में मैने महासतीजी के किशनमें वैराग्य है । आत्म-साधना के पवित्र पथ पर बढ़ने गढ दर्शन किये। उसके पूर्व श्री दिनेश मुनि
वाले तेजस्वी साधक ही भारतीय जन-जीवन के परम महासती पुष्पवतीजी के सम्बन्ध में बहत कूछ सून आदर्श परम आदरणीय और परम वन्दनीय रहे हैं: रखा था। दर्शन कर मुझे यह अनुभव हुआ कि
मुझे यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि जितना सुना था उससे कहीं अधिक महासतीजी में
अध्यात्म साधना की सफल साधिका ६३
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