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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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उन्होंने उन साधकिाओं को देखा है जिनके- लहलहा रहा है। मैंने अनेक बार आपके-दर्शन अनमानस में साधना का अहंकार फन फैलाकर किये और जब-जब भी दर्शन किये तब-तव मैंने यह फुतकार रहा था । और अहंकार के काले नाग के अनुभव किया कि आपके हृदय में म्नेह का सागर डसने से वे एक दिन साधना के पथ को भूल गये। ठाठे मार रहा है। कोई भी सती हो आप सदैव उन्होंने उन साधिकाओं को भी देखा है जिनके अपनत्व लुटाती रहती है। आपकी उस उदात्त जीवन में विनय का साम्राज्य था । जो सेवा की भावना के कारण ही आपका अभिवन्दन प्रतिमूर्तियाँ थी उनका जीवन विशुद्ध और विशुद्धत्तर अभिनन्दन किया जा रहा है। होता चला गया। आपने अनुभव के आधार पर ज्ञान कर्म के योगी हो तम. अहंकार को छोड़कर नम्रता स्वीकार को है।
आधार बने जीवन के। समता, सरलता, आदि सद्गुणों को अपनाये हैं प्रेम से अर्पित है ये, जिससे आपका जीवन वृक्ष कल्पवृक्ष की तरह
श्रद्धा कण मेरे मन के ।
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सागरवर गम्भीरा
-शान्तिलाल तलेसरा, (सूरत)
महासती पुष्पवतीजी एक प्रतिभा सम्पन्न किया वे एक सतेज साध्वी हैं। उनका हृदय आनन्द साध्वी हैं। उनके जीवन में जहाँ प्रतिभा की से लबालब भरा हुआ है और वे सदा आनन्द तेजस्विता है, वहाँ पर आचार के प्रति गहरी बाँटती रहती है। निष्ठा है । आचार और विचार का समन्वय उनके महासती पुष्पवतीजी एक सुलझी हुई विचारिका जीवन में है। जैन मनीषियों ने साधना की परि- है। यही कारण है कि वे जो बात कहती है वह साफ पूर्णता के लिए ज्ञान और क्रिया का समन्वय होती है, सीधी होती है, और सरल होती है । कहीं आवश्यक माना है। जिस जीवन में केवल एक पर भी उसमें दूराव व छिपाव नहीं होता। जिन पहलू की ही प्रधानता होती है, वह साधक अपूर्ण व्यक्तियों के विचार उलझे हुए हैं उनकी बातें भी है। ज्ञान के बिना क्रिया अन्धो है, तो क्रिया के उलझी हुई होती हैं । उनमें स्पष्टता नहीं होती। बिना ज्ञान पंगु है । इसलिए जिस साधक के जीवन महासती पुष्पवतीजी में मैंने एक महत्त्वपूर्ण में दोनों की परिपूर्णता होती है, वही महान है। विशेषता देखी-वे बहुत ही जागरूक साधिका हैं । मैंने बहुत ही निकटता से महासतीजी को देखा, कहीं भी संयम-साधना में दोष न लगे, इसके लिए परखा मुझे आत्म-सन्तोष हआ कि वे एक सफल वे सतत सावधान रहती हैं। मैंने पूछा-आप में साधिका हैं।
साधना के प्रति जो जागरूकता है उसका मूल कारण जव कभी भी मैंने महासतीजी के दर्शन किये। क्या है ? उत्तर में उन्होंने बताया कि मेरे में जो ये सदा उनके चेहरे पर मधुर मुस्कान अठखेलियाँ संस्कार हैं उसका श्रेय है मेरे पूज्य दादाजी श्री करती हुई दिखलाई दी। कभी भी उनके चेहरे पर कन्हैयालालजी सा० को। मेरे दादाजी बहत ही तनाव और क्रोध की रेखाएँ नहीं पाई। जिनके धर्मनिष्ठ साध्वाचार के प्रति जागरूक श्रावक थे। हदय में प्रसन्नता का सागर ठाठ मारता है उन्हीं के बाल्यकाल में मैंने उनकी प्यारी गोद में बैठकर यह चेहरे पर सदा प्रसन्नता चमकती है। महासती सीखा कि साधना में प्रतिपल-प्रतिक्षण जागरुक पुष्पवतीजी के सानिध्य में रहकर मैंने यह अनुभव रहो। उसके पश्चात् मेरी सद्गुरुणी श्री सोहन
६६ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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