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साध्वारत्न पुष्पवता अभिनन्दन ग्रन्थ
विभूतियाँ निकलीं जिन्होंने संयम-साधना स्वीकार उनके पुत्र देवेन्द्र मुनि ने जहाँ माँ के नाम को कर अपना तो कल्याण किया ही साथ ही हमारे रोशन किया है, आज वे श्रमणसंघ के उपाचार्य है परिवार का भी उद्धार किया है। महासती श्री यदि आज मेरी बहन होती तो फली नहीं समाती। प्रभावतीजी मेरी बड़ी बहन थी। हम सभी बहनों से जहाँ भाई ने इतना विकास किया है वहाँ बहिन उनके जीवन में विलक्षणता थी, वे साहस की धनो पुष्पवतीजो भी अपनी ज्ञान की गरिमा से मंडित थीं । जो मन में संकल्प कर लेती उसे सम्पन्न कर ही रही है। उनका जीवन तप-त्याग और साधना का विश्राम लेती थी। वे बहुत ही छोटी उम्र में विवाह त्रिवेणी संगम है। के बन्धन में बंधी और कुछ दिनों के पश्चात् वैधव्य मैं उनके दीक्षा स्वर्ण जयन्ती के अवसर पर की काली घटाएँ भी उनके जीवनाकाश में मंड- अपनी ओर से, अपने पुत्र डूंगरसिंह, मोतीसिंह, राई और उनके साहस के दाक्षिणात्य पवन ने वे दुःख कानसिंह, और पुत्री टमटमा की ओर से श्रद्धा-सुमन की घटाएँ भी छितर-बितर कर दी और स्वयं ही समर्पित करती हुई यही मंगल कामना करती हूँ कि नहीं, अपने पुत्र और पुत्री के साथ त्याग मार्ग ग्रहण वे सदा स्वस्थ रहकर हमारा मार्ग दर्शन करती कर एक उज्ज्वल आदर्श उपस्थित किया। वे जब रहें । तक जीवित रहीं प्रकाशपुंज की तरह प्रकाश वितीर्ण करती रहीं । उनका अनूठा और अद्भुत व्यक्तित्व
ज सभी के लिए प्रेरक रहा ।
నటించిందించిందంజలంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంమణం
स्वर्णिम अवसर
-श्री भंवरलाल एडवोकेट (उदयपुर)
అలంకరించిందించిందించిందించడంంంచడంంంంంంంంంంంంంందుడు అందించి
__ महासतीजी श्री पुष्पवतीजी एक उच्चकोटि के व्यक्तित्व की धारक श्रमणी हैं । आप ज्ञानी हैं, इसलिए जहाँ भी जाती है अपने ज्ञान-गरिमा की दिव्य ज्योत्स्ना से सभी को प्रभावित करती हैं। वैज्ञानिकों का मन्तव्य है कि मानव के आस-पास एक तेजोवलय होता है जिसका प्रभाव निकटस्थ व्यक्तियों पर गिरता है। उससे पापी से पापी व्यक्ति का जीवन भी परिवर्तित हो जाता है । आपके जीवन रूपी घट में से मानवता रूपी मधु झरता है जिसका पान करने हेतु भक्त रूपी भंवरे सदा आपके पास मंडराते रहते हैं।
आपकी प्रवचन शैली बहुत ही मधुर है, जब वाणी रूपी सरिता कल-कल-छल-छल कर प्रवाहित होती है तो श्रोतागण आनन्द से झूम उठते हैं । आपके प्रवचनों में जीवन का गहरा चिन्तन-मनन एवं अनुभवों का निचोड़ है। उनके प्रवचनों में अन्तःकरण से निकले हुए उनके उद्गार बहुत ही स्फूर्त, सहज और स्वाभाविक होते हैं।
आपके जीवन की अनेक विशेषताएँ है, आपने १३ वर्ष की उम्र में साधना-मार्गको स्वीकार किया उस समय हमारे पूरे परिवार का विरोध था। विरोध के बावजूद भी आपने अपने संकल्प को पूर्ण किया। मेरी बुआ महाराज महासती प्रभावतीजी बहुत ही साहसी महिला थी, उन्होंने पहले अपनी पुत्री को दीक्षा दी उसके पश्चात् पुत्र को दीक्षा दी और फिर स्वयं ने दीक्षा ली। इस प्रकार उन्होंने अपने पूरे
स्वर्णिम अवसर ८६
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