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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
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गौरवास्पद था। पारिवारिक-सामाजिक और हमारी गोद में खेलते-कूदते रही एक दिन इन्होंने शारीरिक बाधाओं की चिन्ता न कर वे अपने लक्ष्य मेरे सामने ही दीक्षा ग्रहण की और आज देखतेकी ओर उतरोत्तर बढ़ती चली गई, सर्वप्रथम देखते दीक्षा को ५० वर्ष बीत गए। आज से पांच उन्होंने अपनी पुत्री को दीक्षा ग्रहण करने के लिए वर्ष पूर्व मेरी बहन महासती प्रभावतीजी का प्रेरणा प्रदान की, उसके पश्चात् अपने इकलौते संथारे के साथ स्वर्गवास हो गया। वे मर करके पुत्र धन्नालाल को दीक्षा दी और अन्त में स्वयं भी अमर हो गई। हमें गर्व है कि हमारे परिवार ने दीक्षा लेकर एक ज्वलंत आदर्श उपस्थित में से ऐसी विभूतियाँ निकली जिन्होंने जिन शासन किया।
की गरिमा में चार-चाँद लगाए हैं। दीक्षा के साथ शिक्षा भी आवश्यक है, बिना देवेन्द्र मुनिजी जिनको मैंने बाल्यकाल में माता शिक्षा के दीक्षा में कोई चमत्कृति पैदा नहीं होती, की तरह प्यार दिया, आज वे श्रमणसंघ के उपाचार्य ज्ञान से साधक का जीवन निखरता है। हमारी पद से अलंकृत हैं और महासती श्री पुष्पवतीजी बहिन महासती प्रभावतीजी सच्ची ज्ञान योगिनी का भी आज साध्वी समाज में प्रमुख स्थान है। थी, स्वाध्याय और ध्यान में सदा रत रहती थी हमारा तन-मन पुलकित है, आज मेरे पति कन्हैया तो पुष्पवतीजी और देवेन्द्र मुनि भी कहां पीछे लाल जी सा० लोढ़ा होते तो उनके प्रसन्नता का रहने वाले थे ? उन्होंने निरन्तर अप्रमत्त रहकर आर-पार नहीं रहता। मैं अपनी ओर से और जमकर अध्ययन किया और हमारे परिवार के नाम अपने प्यारे पूत्र आजाद, भगवती तथा अपनी को रोशन किया।
पुत्रियाँ रतनदेवी, शकुन्तलादेवी और कंचनदेवी बहिन महाराज के सम्पर्क में आकर हमारी की ओर से भी हादिक श्रद्धार्चना समर्पित करती पुत्री प्रियदर्शना ने भी दीक्षा ग्रहण की, और उनके हुई यह मंगल कामना करती हूँ कि पुष्पवती जी चरणों में रहकर अपने जीवन को निखार पूर्ण स्वस्थ रहकर हमारे परिवार का नाम सदा
सर्वदा दीपाती रहें। ____ समय की गति बड़ी तीव्र है, एक दिन यह
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అందించిందించిందించిందించిందించిందించిందించిందించింంంంంం
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जैन ध म की वि भू ति
-श्रीमती धापुबाई, भगवतीलालजी खिवसरा (उदयपुर) skedede b este destustestosteste slasksede desta vieste deste destesiste kestostesbitestostertestesksbestekostedestes teststestesterkobstsestestekste beste keskse kestestoste
महासती पुष्पवतीजी एक अलौकिक प्रतिभा की गम्भीरता, पृथ्वी की सहिष्णुता, कमल की और अप्रतिम व्यक्तित्व की धवल आभा से मण्डित निर्लिप्तता और सुमेरु की निश्चलता है। आपके साध्वी हैं उन्होंने समाज में नई चेतना, नई प्रेरणा जीवन में सद्गुणों का साम्राज्य है, आपको आकृति
और नया उत्साह समुत्पन्न किया। आप श्रमणसंघ में नम्रता है, प्रकृति में सहजता है और सेवा में निः की एक ज्योति हैं, जैन धर्म की विभूति हैं और स्वार्थता है। ज्ञान की गरिमा और आचार की मघुत्याग-वैराग्य की साकार मूर्ति हैं। आपके जीवन में रिमा से आपका व्यक्तित्व जगमगा रहा है। सूर्य की तेजस्विता, चन्द्रमा की शीतलता, सागर हमें गौरव है कि हमारे परिवार में से ऐसी
८८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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