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________________ साह आमनन्दन ग्रन्थ किशनगढ़ में जैन साधुओं एवं साध्वियों के विराजने की परम्परा सतत लाभदायी रही है । सर्वश्री पन्नालालजी म० सा० सहस्रमल जी म० सा० छगनलालजी म० सा० हस्तीमलजी मा. आदि ने यहां चातुर्मास किये है । शेषकाल में चौथमलजी म सा आनन्द ऋषिजी म० सा०, उपाध्याय पुष्कर मुनि जी म० स०, कविरत्न अमरचन्दजी म. सा. विजय मुनिजी म. सा. नान्हालालजी म. सा. हमामीवालजी म० सा०, युवाचार्य मिश्रीमलजी 'मधुकर' म० सा०, मोहन लाल जी म० सा० आदि ने अपने प्रवचनों से किशनगढ़ की जनता को कृतार्थ किया । साध्वियों में चातुर्मास एवं शेष काल में यहाँ बिराजने वाली है उमराव कुवरजी म० सा० प्रेमवती जी म० सा०, चारित्रप्रभा जी म० सा०, आदि । यहाँ कुछ दीक्षाएँ भी हुई हैं । संथारे के उदाहरण भी यहाँ प्राप्त है । साध्वी रत्न श्री पुष्पवती जी म० के किशनगढ़ चातुर्मास को मैं 'ऐतिहासिक' विशेषण से अलंकृत करना चाहता हूँ । यहाँ महासतियों के चातुर्मास की श्रृंखला में वह एक अनुपम कड़ी भी रहा । जब किशनगढ़ में आप श्री के चातुर्मास की स्वीकृति हुई तो न केवल आपसे पूर्व परिचित व्यक्तियों को बल्कि अन्य जनों को भी अत्यन्त हर्ष का अनुभव हुआ | आपके प्रथम प्रवचन ही को सुनकर श्रोताओं ने अपने को धन्य माना । अल्प समय में ही यह आभास हो गया कि आपकी वाणी में साधना - समन्वित एवं तपप्रसूत मसृणता है; व्यवहार में स्नेह - सिक्त कुशलता एवं व्यक्तित्व में साध्वी- सुलभ आकर्षण । वरिष्ठों से प्राप्त शिक्षाओं एवं गहन अध्ययन के ये सब सहज फल कहे जाएगे । गुरु श्री उपाध्याय पुष्कर मुनि जी म० सा० एवं गुरुणी सोहन कुंवर जी म० के उच्चकोटि के व्यक्तित्व आपके पथ प्रदर्शक रहे । संसार पक्ष में भाई साहित्य वाचस्पति देवेन्द्र मुनिजी एवं अन्य साधु-साध्वयों के सम्पर्क ने भी आपको लाभान्वित किया है । एक प्रमुख वैशिष्ट्य की आप धनी है और वह है साध्वी मर्यादाओं का सहज एवं पूर्ण परिपालन | स्नेह की आप आदर्श हैं; उसका उच्च प्रमाण आपके साथ रहने वाली महासतियों के प्रति आपके व्यवहार से प्राप्त होता है । पारिवारिक पूर्ण संस्कारों एवं आर्हती दीक्षा की पालना के फलस्वरूप ही आपने अपना जीवन एक सुसंस्कृत तपस्विनी के रूप में ढाला । जैन आगम दर्शन एवं साहित्य में आप पारंगत हैं | श्रमणाचार, श्रावकाचार आदि विषयों पर लिखे गये प्राकृत एवं अपभ्रंश भाषाओं के ग्रन्थों का आपका अध्ययन विपुल है । संस्कृत भाषा में लिखे गये जैन एवं जैनेतर साहित्य में आप निष्णत हैं । हिन्दी एवं कतिपय अन्य साहित्य का भी आपका अध्ययन गम्भीर है । व्याकरण में आप सिद्धहस्त हैं । श्री पुष्पवतीजी म. को लेखनी में अजर्जव के साथ सौष्ठव है, गहनता के साथ सारल्य और आदर्श के साथ भाव प्रवणता, उनकी भाषा में स्फीत वाग्धारा है । जैन एवं जैनेत्तर समाज उनकी कृतियों से समान रूप से लाभान्वित होते हैं । चातुर्मास में आपश्री धार्मिक प्रवृत्तियों में प्रोत्साहन की प्रेरणा निरन्तर प्रदान करती रहीं । पौषध, उपवास, आयम्बिल, सामायिक, पचक्खाण आदि से सम्बन्धित आदेशउपदेश जैन समाज के अध्यात्मिक उत्थान में सहायक होते रहे । चातुर्मास में पर्युषण पर्व में आपश्री का धार्मिक योगदान अत्यंत सफल एवं लाभदायक रहा। जाने-माने संतों की पुण्य तिथियों पर आपके प्रवचन धर्म पथ पर समाज को अग्रसर करने में सहायक सिद्ध हुए । जैनेतर समाजों के व्यक्ति भी अपनी धार्मिक प्रेरणाओं में आपश्री के प्रवचनों द्वारा अनायास ही धर्म वृद्धि प्राप्त करते रहे । आपके प्रवचनों में विविध श्रोताओं की उपस्थिति उसका ज्वलंत प्रमाण है । प्रवचनों में लगभग सभी धर्मों के सर्वमान्य तथ्य दृष्टांतों के रूप श्रोताओं को प्रभावित करते रहे । आपश्री को जैनेतर धर्मों का भी विस्तृत अध्ययन है । भार ती षट्दर्शन की गहनता को अतीव सरल एवं सुवोध भाषा में श्रोताओं के हृदयंगम कराने की आप में अद्भुत शक्ति है । आपका कोई भी प्रवचन कभी एकङ्गी न होकर सर्वदा सर्वागीण होता था । जहाँ प्रबुद्धों के लिए साध्वीरत्न श्री पुष्पवतीजी : एक संस्मरण ७७ www.jai
SR No.012024
Book TitleSadhviratna Pushpvati Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDineshmuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1997
Total Pages716
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size25 MB
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