________________
साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक ककककककककककककककककककनलककयर
साध्वीरत्न श्री पुष्पवती जी : एक संस्मरण
-डा० फैयाज अली खाँ, (किशनगढ़) (एम० ए० पी एच० डी० हिन्दी एवं अंग्रेजी)
etesbsecheskiesesseskiesesesesesedevkese siesteolestesesesesledesdesksksesekertesese desesesevedosbolestesbelesechodaedesksesechsleste sesbsesesoreshsbsesksebedese
इसे परम सौभाग्य ही कहा जायगा कि मुझे महासती जी के सम्बन्ध में वन्दना स्वरूप कुछ शब्द निवेदन करने का सुअवसर प्रदान किया गया । प्राचीन एवं सतत-प्रयोगित होने के कारण अनेक कहावतें औपचारिकता मात्र रह जाती हैं। उनमें से एक है 'सूर्य को दीपक दिखाना' तथापि इस लेख में तो औपचारिकता का नितान्त अभाव मानकर मुझे कृतार्थ करने की प्रार्थना है, क्योंकि इस अकिञ्चन की लेखनी से प्रसूत शब्द केवल दुः साहस ही कहे जा सकते हैं । किन्चित उपशमन के रूप में कवि कुलचूड़ामणि कालिदास के निम्सांकित श्लोक का आश्रय लेकर उपस्थित होता हूँ।
__ अथवा कृत वाद्वारे वंशेऽस्मिन् पूर्वसूरिभिः ।
मणौ वज्रसत्कीर्णे सूर्यस्येवास्ति मे गतिः ।। वस्तुतः, साध्वीरत्न जी के विषय में मेरे लेखन का आधार जैन आगम एवं अनेक तपस्वी साधुसन्तों, मुनियों आदि के प्रवचन एव लेख हैं। और वे ही मेरे सम्बल हैं।
किशनगढ़ क्षेत्र के निवासियों के पुण्योदय के फलस्वरूप सन् १९८४ का चातुर्मास महासतीजी ने यहाँ किया । किशनगढ़ अनुपम पुण्य-स्थली है; जैन धर्म का भी यह प्रसिद्ध स्थान रहा है । अतीत में यहाँ जैनियों के २७०० घर थे एवं लगभग २५ स्थानक थे। अनेक प्रकृष्ट जैन साधुओं ने यहाँ निरन्तर चातुर्मास किये; अनेक जैन वैरागियों को योग्य शिक्षा प्राप्त करवाने के यहाँ स्थायी प्रबन्ध रहते थे; जैनधर्म साधना के यहाँ उत्कृष्ट साधन उपलब्ध थे; भारत के समृद्ध धार्मिक नगरों से सम्पर्क स्थापित करने वाले प्रमुख राजमार्ग पर स्थित होने, निवासीय सुविधाएँ उपलब्ध होने, जलवायु की अनुकुलता, एवं . महाराजाओं की विशाल-हृदयता के कारण यहाँ भिन्न भिन्न प्रांतों के वर्गों, धर्मावलम्बियों, आचार्यों, सन्तों, आदि से पारस्परिक विचार-विनिमय के सहज सुअवसर प्राप्त थे। फलतः किशनगढ़ राज्य अनेक दृष्टियों से एक अनुपम आकर्षण-स्थल रहा। धर्म-साधना की दृष्टि से भी यहाँ के प्राकृतिक उपकरण विशेष महत्वपूर्ण थे । पर्वतों की कन्दराओं, नदी तटों एवं वनों में अनेक धर्मों के साधक निवास करते थे गुजरात की साध्वियों ने मुझे हाल ही में बताया कि गुजरात-काठियाबाड़ के एक प्रसिद्ध सन्त किशनगढ़ राज्य की पुनीत भूमि पर षाण्मासिक अरण्य-तप के लिए विराजेथे ।
. यहाँ के महाराजा धर्मों के प्रति श्रद्धावान होने के साथ-साथ जैन धर्म के प्रति भी आदर प्रदशित करते थे। जब रूपनगर में इस राज्य की राजधानी थी तब वहाँ कुछ सिद्ध जैनाचार्यों ने तत्कालीन महाराजा को एक बहु-चर्चित विज्ञप्ति पत्र दिया था। सम्भव है वह अब भी कहीं उपलब्ध हो । उसे ऐतिहासिक कहा गया था जिसके फलस्वरूप जैन मतावलम्बियों को अनेक सुविधाएँ दी गयी थी। यह जैन सन्तों के प्रति महाराजाओं की सद्भावना की परम्परागत प्रदर्शिका थी। कुछ अधिक लम्बा समय नहीं, हुआ जब श्रद्धय चौथमल जी म० सा० के प्रति उदयपुर के महाराणा ने अपनी श्रद्धा का सतत प्रदर्शन किया।
७६ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
www.jaith
.:
: