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DIRECTIवारन पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
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और फिर उसकी परीक्षा देना बहुत ही कठिन कार्य था। पर आपने चन्द्रमा की चांदनी में बैठकर रातरात भर जगकर उसे याद किया। रात्रि-जागरण की कोई चिन्ता नहीं थी। पर उस समय केवल एक धुन थी, अध्ययन-अध्ययन-अध्ययन । इसी ज्ञान-लिप्सा के कारण आप प्रथम श्रेणी में समुत्तीर्ण हुई ।
जीवन के ऊषाकाल से ही आप स्वावलम्बिनी रही। अपना कार्य अपने ही हाथों करना आपको पसन्द था। आप अपने वस्त्र स्वयं प्रक्षालन करती थी। स्वयं अपने वस्त्रों को सीती और स्वयं के पात्रों को स्वयं ही साफ करती। और स्वयं के वस्त्र आदि की प्रतिलेखना स्वयं ही करती।
•अध्ययन के साथ आप में आज्ञापालन का गुण भी गजब का रहा है । जीवन के प्रारम्भ से ही आप बिना बड़ों की आज्ञा के कोई भी कार्य नहीं करती। कई बार बिना मन के भी आप सहर्ष आज्ञा का पालन करती । सन् १९७७ में गुरुणीजी श्री सोहनकुंवरजी म. पाली में बिराजी ही थीं, उनका स्वास्थ्य काफी अस्वस्थ था। वर्षों से आप सद्गुरुणीजी की सेवा में ही वर्षावास करती रहीं । पर उस वर्ष गरुणीजी ने आदेश दिया कि तझे अजमेर जाना है। आपने गुरुणीजी से निवेदन किया कि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है। मैं इस वर्ष आपकी ही सेवा में रहना चाहती हूँ। पर गुरुणीजी के आदेश को स्वीकार, कर बिना मन ही अन्य सतियों के साथ अजमेर की ओर प्रस्थान किया। मन में शंका थी, वह शंका सार्थक हो गई । वर्षावास में ही सद्गुरुणी का स्वर्गवास हो गया। आपको पहले स्वप्न में आभास हो गया था कि गुरुणीजी म. यह चातुर्मास नहीं निकालेंगी। पर गुरुआज्ञा को आपने सदा महत्त्व दिया।
सन् १९८० का वर्षावास उपाध्याय पुष्कर मुनिजी म० का उदयपुर में था। मैं भारत सरकार की ओर से योग-विद्या पर भाषण देने हेतु अमेरिका गया था। वहाँ पर मैंने ४४ भाषण दिये। अमेरिका के एक मित्र डॉ० जेम्स भी मेरे साथ भारतीय तत्त्व विद्या का परिज्ञान करने के लिए भारत आये थे। हम दोनों उपाध्यायश्री के दर्शनार्थ उदयपुर पहुंचे। दस दिन वहाँ पर रुके। महासती पुष्पवतीजी अपनी मातेश्वरी महासती प्रभावतीजी के साथ वहीं पर विराज रही थी। उन्होंने मेरे से ध्यान और योग के सम्बन्ध में विभिन्न जिज्ञासाएँ प्रस्तुत की। मैंने अपनी ओर से समाधान करने का प्रयास किया।
.दस दिनों तक विविध विषयों पर समय-समय पर उनसे वार्तालाप हुए। मैंने वार्तालाप में यह अनुभव किया कि पुष्पवतीजी एक प्रकृष्ट प्रतिभा सम्पन्न साध्वी हैं, उनमें तीव्र जिज्ञासा है। यह जिज्ञासावृत्ति ही उनकी प्रगति का मूल हैं। वे सीधी और सरल हैं। उनकी सरलता को निहारकर मेरा मन बहुत ही प्रसन्न हुआ।
.इस प्रकार आपके जीवन के विविध संस्मरण रह-रहकर स्मृत्याकाश में चमक रहे हैं पर उन सवको लिखना बडा कठिन है। कभी समय पर लिखने का प्रयास करूंगा। वस्तुतः उनका जीवन एक प्रेरक जीवन है। उनके जीवन में विविध सद्गुणों को निहारकर हमारी मंगल कामना है कि वे सद्गुण हमारे जीवन में साकार हों।
पुष्प सूक्ति कलियां
प्रेमरूपी सम्पत्ति को न तो कहीं से लाना होता है और न किसी से लेना होता है। मनुष्य की अन्तर्रात्मा में इसका समुद्र लबालब भरा है।
ऐसा अथाह समुद्र कि हजारों वर्षों तक संसार के सारे मनुष्यों या अभीष्ट * प्राणियों को बाँटा जाय, तब भी उसमें कभी कमी नहीं आती।
MARATARNURSES
प्रेरक संस्मरण ७५
LISEDPUR
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