________________
मम
म ममममममममम्म्म्म
साध्वीरत्नपुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ
-हे पूज्या आपके इस प्रकार के महिमाधारी ब्रह्मचर्य व्रत की निर्मल कीति का गान, देव और दानव दोनों करते हैं। क्योंकि यह ब्रहचर्य व्रत समस्त ब्रतों की जड़ है। इस व्रत के बिना कोई भी व्रत पूर्ण हो ही नहीं सकता उपवास, कथा श्रवण, स्वाध्याय, विद्याध्ययन इत्यादि सभी व्रतों की यह ब्रह्मचर्य व्रत जड़ मूल है ॥ ६ ॥
यः कोऽपि ना व्रतमिदं विधि पूर्वकञ्चेत्, सम्पालये त्स यमराजमपि प्रहण्यात् ।। अस्य प्रभावमतुलं हनुमन् विदित्वा, सम्पालयस्तदजरोऽप्यमरो बभूव ॥७॥
-हे पूज्या इस व्रत को जो कोई भी मानव विधि पूर्वक पालन करता हैं, वह यमराज को भी समाप्त कर (हरा) देता है।
इस महाव्रत के अतूल प्रभाव को समझकर श्री हनमान जी पालन करते रहे और अजर अमर हो गये।
-हे पूज्या आपने इस कठोर व्रत का पालन किया है, अतएव आपके सभी असाध्य कार्य भी सिद्ध होते हैं। ब्रह्मचर्य के प्रभाव से आप साक्षात् देवी ही बन गई हैं । आपका नाम पुष्पवती इस व्रत से सार्थक हो गया है ।। ७ ॥
अस्य व्रतस्य महिमानमपि प्रगायेत्, देवासुरेषु नृषु सिद्ध कवीश्वरेषु । एतद् व्रतम्परिचरन्मनुजोऽसुरो वा, नारायणः स भवतीति न संशयोऽस्ति ॥८॥
-हे पूज्या इस महाव्रत की महिमा का शतांश भी, देव, असुर, नर, मुनि, सिद्ध अथवा महा कवियों में कौन ऐसा समर्थ है जो गा सके (वर्णन कर सके) ।
इस महाव्रत को पालन करने वाला चाहे मानव अथवा राक्षस कोई भी हो, वह साक्षात् नारायण भगवत्स्वरूप हो जाता है ।। ८ ॥
राजेन्द्रनाम मुनिरेष महाव्रतस्य, श्री पुष्पवत्यमरकीतित सच्चरित्रे । त्वत्पालितस्य गुणधाम्न उदारवृन्ले गायन्महा महिमदस्य सुखी भवामि ॥६॥
-श्री पुष्पवती के सच्चरित्र में जिसकी प्रशंसा देवी-देवता भी गाते हैं, जो यह महाव्रत ब्रह्मचर्य है, और इसका पालन श्री पुष्पवती जी ने बड़ी निष्ठापूर्वक किया है, यह व्रत समस्त उदार गुणों का खजाना हैं और साथ ही यह व्रत सबसे बड़ी महिमा प्रदान करता है। अतएव में राजेन्द्र मुनि इस महाव्रत और इसे स्वेच्छा से सहर्ष धारण करने वाली महासतीजी श्री पुष्पवती इन दोनों का गुणगान करने में अत्यन्त मनोरम आनन्द का अनुभव कर रहा हूँ ।। ६ ॥
पुष्प सूक्ति कलियाँ
अहिंसा यह कभी नहीं सिखाली कि अन्यायों को सहन किया जाय, क्योंकि अन्याय करना अपने आप में पाप है ।
अहिंसा समस्त प्राणियों का विश्राम-स्थान है, क्रीडा-भूमि है और मानवता का श्रृंगार है।
] अहिंसा, मानव जीवन का सर्वोत्तम आभूषण है । यह आन्तरिक समताभाव पर आधारित है । अहिंसा इतना सार्वभौम और सर्वांगव्यापी तत्त्व है, कि यह मानव-जीवन में अनेक धाराओं में प्रवाहित होता है।
६६ | पुष्पवत्यष्टकम्
mation