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साध्वारत्न पुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
वंदना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला दो
युग-युग में चमके यश गावे नर-नारी धन्य महासतीजी पुष्पवती गुणधारी ॥ टेर ॥ सब देशों का सरताज मेवाड़ कहावे । पिता जीवनसिंह वरड़िया वंश दिपावे । हुई माता आपकी प्रेम कुंवर सुखकारी ॥ १ ॥ जब चार वर्ष की
आयु आपने पाई तब माता आपकी सुरलोक सिधाई ॥ सब परिजन के नयनो में बहता वारी ॥ २ ॥
गोगुन्दा के सेठ श्री मगनलाल मन भाये । उसकी सुता से लग्न कर हर्षाये, तीज कुंवर का नाम
वह सुन्दर बाला माता की
४ ।
फिर धन्ना सबको तज घर हो
बड़ा प्रियकारी ॥ ३ ॥ मन में अति हर्षाती । सेवा करके प्रेम बढ़ाती, नाम के भ्रात हुए जयकारी ॥ करके तात स्वर्ग में जाते, गया सूना आगे कथा सुनाते । तीनों के मन वैराग्य हुआ उस वारी ।। ५ ।। विक्रम संवत् उन्नीस सौ चौराणु आया 1 तब सुन्दर कुंवर ने संयम का व्रत ठाया । तेरह वर्षों की उमर मोहनगारी ।। ६ ।। गुरुदेव आपके ताराचन्दजी प्यारे । उनके कुल में पुष्कर मुनि जैन सितारे । नौ वर्ष के भ्राता धन्ना दीक्षा धारी ॥ ७ 1 फिर तीज कुंवरजी पति विरहणी नारी, सती सोहन कुंवर जी शिक्षा दी हितकारी ।
लीना है संयम धार सकल दुःख टारी ॥ ८ ॥ माता पुत्री ने एक ही गुरुणी कीनी, कई शास्त्र थोकड़े सीखी है गुण खानी दिया पुष्पवती शुभ नाम है महिमा भारी ॥ ६ ॥ साहित्यरत्न की पास परीक्षा श्री रमाशंकर जी से पढ़ी हर्ष मन करके । जिनके चरणों में "चन्द्र" रहे हर वारि ।। १० ।।
करके.
--आर्या चन्द्रावती
वन्दना के इन स्वर में एक स्वरों मेरा मिला दो | ६७
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