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साध्वारत्नपुष्पवता आभनन्दन ग्रन्थ
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श्रेष्ठ साधना करने वाली, निर्भय समय विचरने वाली ॥२६॥ सहज समन्वय ज्ञान-भक्ति का, शुभ संयोग विशेष शक्ति का ॥३०॥ चिन्तन मन्थन रखती गहरा, रखती निज पर निजका पहरा ॥३१।। अच्छाइयाँ सदा अपनाती, गुणियों के गुण मन से गाती ।।३२।। नहीं देखती दोष किसी का, मार्ग दिखाती एक इसी का ॥३३।। जन सेवा की सरल मूर्ति सी, संस्कारों की तरल स्फूर्ति सी ॥३४।। स्पृहा, घृणा से जुड़ी नहीं है, सत्कार्यों से मुड़ी नहीं हैं ॥३५।। किया नहीं अभिमान ज्ञान का, लिया लाभ सद् ज्ञान दान का ॥३६।। मुनि 'देवेन्द्र' आपके भ्राता, नाता सांसारिक कहलाता ॥३७।। यूँ भी बहन और ये भाई, संप्रदाय जब एक सुहाई ॥३८।। बहुत पुस्तके की सम्पादित, हुई पुस्तकें बहुत प्रकाशित ॥६६।। लेखन सम्पादन अति सुन्दर, बढ़ती साहित्यिक गति सुन्दर ॥४०॥
शिष्यायें भी चार आपकी, यह भी विधि दूक पुण्य माप की ॥४१॥ 'चन्द्र' 'प्रिय' है आज्ञा कारी, 'किरण' 'रत्न' की सेवा प्यारी ॥४२।। श्रेष्ठ स्वभाव इसी से ऑको, सामाजिक जीवन विधि झांको ॥४३।। श्रमणसंघ है अपना सारा, अपना फर्ज निभायें प्यारा ॥४४।। गुण गुण ग्रहण करें सब आओ, गाओ मंगल गीत बधा वो ॥४५॥ पूज्य प्रवर आनन्द ऋषीश्वर, सरल भद्र प्रकृति योगीश्वर ॥४६।। उपाध्याय पद मुनि पद जय जय महानन्द पद निर्भय जय जय ॥४७।। पुष्प पराग विराग बढ़ाये, जन मन श्रद्धा सुमन चढ़ाये ।।४।। रहे निरोग संयमी काया, छू न सके माया की छाया ।।४।। "मुनि दिनेश' सुगुन चुन लाया, चतुष्पदी का छन्द बनाया ॥५०॥ इकावनी पढिये गुनवाली, गुनी पुरुष के सदा दिवाली ॥५१॥
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दो मुक्तक
(२) देना दूसरों को खूशबु, फूल का स्वभाव होता है, मनाये हर्ष समय है, हर्ष मनाने का,
इच्छुक हो जो मुक्ति का, वह वैराग्य धार लेता है। करे अभिनन्दन योग्य, पात्र है अभिनन्दन का। A ले संयम अल्प वय में. दिपाने धर्म का नाम जग में. कर रही प्रवेश दीक्षा स्वर्ण, जयंति वर्ष में सतो. उसी महानारी का 'उदय'
प्रसंग है यह, 'उदय' वैराग्य, महत्त्व बताने का ॥ "पुष्पवती" सा सम्मान होता है।
--उदय मुनि 'जैन सिद्धान्ताचार्य'
दो मुक्तक | ५६
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