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साध्वीरत्न पुष्पवती अभिनन्दन ग्रन्थ ।
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पुष्प
के चरणों में भाव-पुष्प
__ -दिनेश मुनि
అందరితంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంంచడంతంగా
[ चौपाइयाँ ] जय त्रिशला सुत, जय जिनवानी,
उन्नीसो चोराणूं विक्रम, जय गुरु गौतम, जय भवि प्रानी ॥१।। माघसुदी तेरस दिन उत्तम ॥१५।। जय व्रतधारक संत सती गण,
दीक्षा स्थली उदयपुर भाई, जय जय संयम श्रम समरांगण ॥२।। श्रमणी पुष्पवती कहलाई ॥१६।। तीर्थ साध्वियाँ तीर्थ श्राविका,
मात्र हर्ष को पुष्प जानता, प्रभाविका ज्ञानात्म भाविका ॥३॥
उदासीनता को न मानता ॥१७॥ परम्परा जय स्थानकवासी,
पुष्प असंगी रंग बिरंगी, ज्ञान विलासी शिव अभिलाषी ।।४।।
करें सिद्ध हम क्यों चौभंगी ॥१८।। अमरसिंह आचार्य प्रवर जय,
बहु आकारी पुष्प मनोहर, विश्व सन्तवर गुरु पुष्कर जय ॥५।। खिलते जल स्थल बाहर भीतर ॥१६॥ महासती श्री प्रभावती जय,
प्रभु चरणों की सेवा पाता, पुत्री पुष्पावती सती जय ॥६॥ हार गले का बन लहराता ॥२०॥ दीक्षा स्वर्ण जयन्ती पर हम,
दुरभिगंध से दूर हमेशा, अभिनन्दन करते अति उत्तम ॥७।। पुष्प स्वभाव जन्म से ऐसा ॥२१।। जन्म भूमि मेवाड़ उदयपुर,
सुरभित वातावरण बनाता, पिता सेठ जीवनसिंह सखकर ॥८॥ खिलता हँसता पुष्प सुहाता ॥२२।। दादाजी श्री लाल कन्हैया,
पुष्प तुल्य जीवन मन निर्मल, जिनका बहुत उदार रवैया ॥६।। हृदय दयालु पुष्प सम कोमल ॥२३॥ माता प्रेम प्रेम बरसाती,
पुष्प सुरभि सम सुरभि सुयश की, जैन बरडिया जाति सुहाती ॥१०।। नहीं निरसता उसके वश की ॥२४।। उन्नीसौ इक्यासी मिगसिर,
पढकर की व्याकरण मध्यमा, कृष्णा सातम मंगल वासर ॥११॥
बढकर की साहित्य मध्यमा ॥२५।। सुन्दर बाई नाम सुहाया,
काव्यतीर्थ कर न्यायतीर्थ कर, प्यार विमाता जी का पाया ॥१२।। कर साहित्यरत्न फिर सुखकर ॥२६।। धार्मिक रुचि रखती बचपन में,
बनी जैन सिद्धान्ताचार्या, क्रमिक विकास हुआ जीवन में ।।१३।। वंद्या आदरणीय आर्या ॥२७॥ गुरुणी सोहनकुंवर सुहाई,
आगम की मापी गहराई, लघुवय में ही दीक्षा पाई ॥१४॥
ध्वजा धर्मवाली फहराई ॥२८॥
५८ | प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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