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साध्यात्मपुष्पवता आमनन्दन वन्य
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वीतराग विज्ञान की, शोध करे दिन रात । निजानन्द में लीन को, सिद्धि आती हाथ ।।
परम विदुषी महासती, पुष्पवतीजी नाम ।
सोहनसती की लाडली, शिष्या गुण का धाम ।। प्रभावती की पुत्रिका, गुण-रत्नों की खान । भगिनी मुनि देवेन्द्र की, जाने जैन जहान ।।
अभिनन्दन उनका अमल, करता सकल समाज ।
गुण पूजा का जगत में, जीवित रहे रिवाज ।। मिला श्रमणियों को सुखद, जिन शासन में स्थान । स्त्री हो चाहे पुरुष हो, संयम सदा महान ।।
समता पथ की साधिका, रखती उच्च विचार ।
उच्च विचार प्रचार हित, करती पाद विहार ।। बाधाओं को चीरती, बढ़ती रही हमेश। आगे बढ़ने का हमें, देती नित उपदेश ।
माता-भ्राता से मिले, खिले धर्म-संस्कार ।
शासन सेवा में रहे, त्वरता से तैयार ॥ गुरु पुष्कर से प्राप्त कर, आध्यात्मिक सज्ज्ञान । पुष्पवतीजी बांटती, दोनों हाथों दान ।।
गुरुणी के प्रति नित रही, पूर्ण समर्पित आप।
सरस समर्पण भावना, सिखलाती है साफ ।। शिष्याओं को दे रही, मातृ तुल्य वात्सल्य । वत्सलता कब पनपती, जो हो दिल में शल्य ।।
श्रमण संघ में आपका, बढ़े सदा सम्मान ।
___ लौ सम जगमगता रहे, जीवन त्याग-प्रधान ।। भाव पूर्ण गुण वर्णना, करें आप स्वीकार । 'मुनि जिनेन्द्र' जीवित रहें, जग में वर्ष हजार ।।
५४ [ प्रथम खण्ड : शुभकामना : अभिनन्दन
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