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साध्वारत्नपुष्पवता भिनन्दन ग्रन्थ
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शा स न ज्योति
--शास्त्री श्री सुरेश मुनि
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కరించండచరించిందించిందించిందించినందుంచించడం మండలం
धर्म वीर जिन धर्म दिवाकर, धर्मतीर्थपति धर्म निधान । धर्मसंघ नायक तीर्थंकर, धर्म दीप हुए श्री वर्धमान । पूर्ववर्ती कई गौरवशाली, सन्त सती ने राखी शान । वर्तमान में भी कई करते, जैन धर्म उद्योत महान् ॥ स्थानकवासी सती शृंखला, रही सदा ही उपकारी । धर्म प्रभावी चरित्रात्मा, महिमा जिनकी है भारी ।। वीर भूमि मेवाड़ प्रान्त का, नगर उदयपुर गौरव धाम । श्रमणीसंघ की रही अध्यक्षा, सोहन सती का उज्ज्वल नाम ।। उनकी शिष्या प्रभावती जी, माता जी पर संघ को नाज । धर्म संघ को अर्पित हो गई, जान रहा है जिन्हें समाज ।। जिनकी पुत्री सुन्दर सुशीला, जैन धर्म शासन की प्राण । पुष्पवती शुभ ख्याति पाई, बनी संघ में ज्योतिर्मान ।। साल चौराणु संयम ले, करा किया आपने आगम ज्ञान । व्याकरण-काव्य न्यायतीर्थ हैं, दर्शन के भी हैं विद्वान । विश्व संत श्री उपाध्याय जी, गुरु आपके गुण की खान । पुष्कर मुनि जी श्रमणसंघ की, शासन ज्योति दीप्तिमान ।। भ्राता आपके देवेन्द्र मुनि जी, उपाचार्य प्रियकारी हैं। सिद्ध हस्त लेखक हैं पूरे, चिन्तक वक्ता भारी हैं ।। ज्ञान ध्यान शिष्या से फूले, कदम-कदम पाये उपहार । युग-युग तक ये महासती जी, खूब करेगी धर्म प्रचार । साध्वी रत्न श्री पुष्पवती जी, का अभिनन्दन हो सुखकार । दीक्षा स्वर्ण जयन्ति पर यह भाव कामना मंगलकार ।। जिन शासन के गगन में, उज्ज्वल ज्योति स्वरूप । लगे सुहानी शिशिर में, जैसे सबको धूप ॥ सद्गुण की सौरभ सदा, महके दिग् दिगन्त । सत्वशील शुभ महासती, गुण-गरिमा अनन्त ॥
शासन ज्योति | ५५
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