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विचारवंतों के दृष्टि में आपने उत्तूरग्राम में क्षुल्लक दीक्षा ली थी। क्षुल्लक दीक्षा में मिथ्यात्व का त्याग कराकर फिर आहार लेते थे । भगवान् नेमिनाथ की निर्माण भूमि में आपने ऐलक दीक्षा ली।
आपने पंचकल्याणक में अपार जनसंख्या समूह में दिगम्बर दीक्षा ली। समडोली में आचार्य ‘परमेष्ठी के रूप में औरों के द्वारा आपकी प्रतिष्ठा हुई ।
पैतीस वर्षों में आचार्य श्री ने कुल मिलाकर ९३३८ दिन उपवास किए। अर्थात् उनके मुनि जीवन में २५ वर्ष एवं ७ मास अनशन में बीते हैं। आपने कई उपसर्गों को सहन किया। आज जो मुनि धर्म उनका विहार जो यत्र तत्र सर्वत्र हो रहा है वह सब आपकी ही देन है ।
ऐसे महान् योगी के लिए मैं बारम्बार भावभक्तिपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ।
त्याग तपस्या की अमरवेल स्वस्ति श्री प्रातःस्मरणीय चारित्र चक्रवर्ति आचार्य श्री शांतिसागर महाराज के शिष्य श्री आचार्य वीरसागर महाराज के शिष्य क्षुल्लक सुमतिसागर की त्रिकाल वन्दना आचार्य महाराज के परम्परागत चरणों में।
सं. वि. २४८९ वैसाख बदी एकम के दिन पूज्य श्री के करकमलों के द्वारा बसवा ग्राम में रत्नत्रय धारण किया था। जयपूर में चातुर्मास हुआ उस वक्त श्री आचार्य महाराज के साथ में पांच मुनिराज श्री १०८ मुनि श्री वीरसागरजी, श्री १०८ मुनि नेमिसागरजी, श्री १०८ मुनि चन्द्रसागरजी, श्री १०८ मुनि कुन्थुसागरजी, श्री १०८ मुनि सुखसागरजी । क्षुल्लक दो श्री १०५ ज्ञानसागरजी और १०५ श्री यशोधरजी थे। आचार्य महाराज का परंपरा शिष्य-परिवार ही सब जगह प्राप्त हो रहा है।
उन वीतराग दिगंबर सिंह वृत्ति के धारक आचार्य श्री की अमरवेल बढती ही जा रही है। आचार्य परंपरा के शिष्य श्री १०८ आचार्य धर्मसागर महाराज ससंघ जैन धर्म की ध्वजा को फहरा रहे हैं। यह सब ही उन आचार्य शान्तिसागर महाराज की ही विश्व के लिए अनमोल देन है।
उनके चरण कमलों को हम पुनः पुनः स्मरण कर नमोस्तु करते है और श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। छोटा दिवाणजी का मंदिर, लालजी सांड का रास्ता
क्षु. सुमतिसागर चातुर्मास, जयपूर
वे गुरु मेरे मन बसो ? प. पूज्य आचार्य महाराजजी ने जैन धर्म पर आई हुई ग्लानि को दूर करने का प्रयास किया है। धर्मप्रचार और धर्मप्रसार किया है। उनका गुण गौरव, चारित्र, तपश्चरण, धर्मप्रभावना आदि कार्यों का जितना वर्णन करे उतना थोडा ही है। हम जैसे पामर क्या वर्णन करे? आपने कितने ही जीवों का कल्याण किया उन्हें सन्मार्ग दिखाया । उनमें से मैं भी एक उपकृत हूँ।
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