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__ आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ आपके सोलापूर, कुंथलगिरी में दर्शन हो पाये, मेरे भाव उमड़ आये । आपकी शांतमुद्रा तपश्चर्य पुनीत प्रभा देखते ही “धन्य धन्य श्रेष्ठ गुरु" ऐसे शब्द सहज ही बाहर आए । चरण स्पर्श कर, दर्शन कर वहीं मैंने आजीवन ब्रह्मचर्य पूर्वक रहने का संकल्प किया।
आचार्य श्री के आशीर्वाद से हि आज यह पद प्राप्त हो सका है। आज जो साधुवर्ग दिखता है, सो आपकी ही कृया है।
आपके चरण द्वयको हमारा कोटी प्रणाम हो । वे गुरू मेरे मने बसो, मेरे हरहुं पातक-पीर ॥
क्षुल्लक १०५ जयकीर्ति महाराज
चौमासा (अक्कलकोट) रत्नत्रयधारी सम्यग्ज्ञान श्रद्धा के धारी आचार्य श्री शांतिसागरजी, ऐसी अमिट छाप हृदय पर उनके दर्शन से अंकित हुई कि साहित्य दर्पण तथा आ. वसुनंदी की मूलाचार की वृत्ति के अनुसार मैं ऐसे महापुरुष को परमेष्ठी कहने में संकोच नहीं करता हूं।
इंदौर, रतलाम, मांगी तुङ्गी आदि स्थानों में जो आचार्य श्री के समागम और उपदेश श्रवण आदि का परम सुअवसर मिला, वह प्राकृतिक शांतिलोक में निवास करने के तुल्य था ।
"सारी दुनिया गई नजर से गुजर ।
तेरी शानी का कोई वशर न मिला ॥" मैं सभक्ति नमस्कार पूर्वक शुद्धात्म चमत्कार पूर्ण महात्माजी को श्रद्धांजलि समर्पण करता हूं।
क्षुल्लक सिद्धसागर
मोजमाबाद. आदर्शरूप अपूर्व जीवन परमपूज्य आचार्य श्री के स्मृति में श्रुत संकलन एक महत्त्वपूर्ण घटना है। पढकर प्रसन्नता हुई। पू. आचार्य श्री का व्यक्तित्व-अनुभव-त्याग-तपस्या अपूर्व थी। वह हमारे लिए आदर्श स्वरूप हैं । लोकवंद्य विभूति के लिए हमारी सादर श्रद्धांजलि हैं ।
आर्यव्रती अकलंक स्वामी
चौमासा, महिष वाडगी-म्है सूर स्टेट सहज प्रश्न का सहज और मार्मिक उत्तर पू. आचार्यजी से अंतिम समय में पूछा गया । क्यों महाराजजी अभी किसका ध्यान कर रहे हो। मुनिनाथ से उत्तर मिला
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