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आ. शांतिसागरजी जन्मशताब्दि स्मृतिग्रंथ
अ.नं.
ग्रंथों के नाम
मूलकर्ता
टीकाकर्ता
मूल व टीका की भाषा
पत्र संख्या पत्र प्रमाण
श्रीजयधवल सिद्धांत
| श्री गुणधराचार्य
श्रीवीरसेन और जिनसेनाचार्य
प्रा. सं.
ताडपत्र लं. २ फूट ३" ५१८ । चौ. २॥"
कागद प्रति लं.११ फूट १०६७ | चौ. ११"
९७४
लं.१ फूट ४॥"
- - चौ. "
२०९९
लं.१ ३.५" | चौ. ५.५"
मृतबलि आचार्य
प्रा. स. सं.
| ताडपत्रलं.२ फू.४"
सत्कर्मपंजिका श्रीवीरसेन और और महाबंध । भूतबलि आचार्य सम्मिलित
१७६/११९/ चौ. २५,
१२ सत्कर्म पं. और
महाबंध
कागज प्रति लं.१फू. २॥"
५२५ चौ.
१०००
लं.१फू. १॥"
चौ. ७"
वि. सू. जयधवल सिद्धांतकी ताडपत्रप्रति एक ही है। अन्य तीनों कागज प्रतियां है । श्री गुणधराचार्य ने ४६००० पदों में “पेज्जपाहुड" अर्थात प्रायोदोष प्राभत को संक्षिप्त कर १८० गाथाओं से युक्त कषाय प्राभूत की रचना की। वह आचार्य परंपरा में आर्यमंक्षु तथा नागहस्ति नाम के आचार्यों को प्राप्त होकर, उनसे यतिवृषभाचार्य ने उन गाथा सूत्रों का अध्ययन कर उनको चूर्णिसूत्र नाम की टीका और उच्चारणाचार्यने उच्चार सूत्रों की रचना की। वह दुर्बोध होने से श्रीवीरसेन तथा जिनसेनाचार्यने जयधवल भाष्य की रचना की है। इसको श्रीवीरसनी टीका कहने पर भी २०००० परिमित आद्यंशकी रचना के समय ही वे स्वर्ग सिधारने के कारण उनके शिष्य श्री जिनसेनाचार्या ने अवशिष्ठ अंश ४०००० की शा. श. ७५९ में पू ।की । इसमें १८० गाथा सूत्र ५३३ व्याख्यान गाथा में गुणधराचार्य प्रणीत हैं । यति-वृषभाचार्य के चूर्णिसूत्र ६००० आचरनाचार्य के उच्चारण सूत्र १२००० इनके ऊपर जयधवल भाष्य ६०००० परिमित ग्रंथ है। इसके ताडपत्र प्रति को " चिक्कमय्य के बल्लिसेठीने" प्रतिलिपि कराकर पद्यसने सिद्धांत देव को समर्पण किया था।
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