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ग्रंथ में अनुमानिक श्लोक | संख्या
६६८२२
23
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३७२६ ४२२८
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१ पत्र में श्लोक संख्या
१२८
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21
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४२
२४
पूर्ण व अपूर्ण
पूर्ण
पूर्ण
अपूर्ण
पूर्ण
अपूर्ण
33
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पच्चीस साल का अहवाल
ग्रंथ या प्रतिलिपिका
समय
प्रति लेखक
भुजबल अण्ण बलिसेठी ने लिखवाया गजपतिशास्त्री
शांतप्य इंद
देवराज सेठी
उदयादित्य
मूडबिद्री पं लोकनाथ शास्त्री
पं. नेमिराजप्पा
शा. श. ७५८ वीर नि. १३६२
वी. नि.
15
प्रति-लिपि
प्राचीन
कानडी
नागरी
हळेगड
मध्यकन्नड
प्रा. कन्नड
नागरी
मध्यकन्नड
विशेष परिचय
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१९
में
१६
।
वि. सू. तालपत्र के ग्रंथ में २७ पत्र तक सत्कर्मपंजिका परिसमाप्ति हुई है । बाद २८ पत्र में महाबंध प्रारंभ होकर २१८ पत्र परि- समाप्ति हुई है । परंतु महाबंध के प्रारंभिक पत्र २८ वा अमतिक नहीं मिला। और भी बीच बीच के पत्र नहीं हैं। इसलिए अपूर्ण है विना नंबर वाले पत्रों को जांच करने का काम समयाभाव से बाकी है यह तो भूतबली आचार्य कृतमही बंद होने में संदेह नहीं है । अध्यायांत्य के प्रशस्ति से मालूम पडता है कि इस सत्कर्मपंजिका को शांति नामक राजा ने उदयादित्य से प्रतिलिपि कराकर श्रीमाघनंदि सिद्धांत देव को समर्पण किया था और महाबंध को रूपसेन की पत्नी मलिकब्बो देवी ने उक्त उदयादित्य से लिखवाकर अपने श्री पंचमी व्रत के उद्यापना के समय उक्त सिद्धांत देव को शास्त्र दान की थी । यह शांतिनाथ वगैरे कहां के ? और किस समय के ? आदि जानने की सामग्री नहीं है ।
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वी. नि. २४३० में प्रारंभ २४ में अंत्य
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