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________________ श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ Jain Education International व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणें : ३६२ : दृढ़ निश्चयी पथ-प्रदर्शक सन्त * साध्वी श्री रमेशकुमारी 'प्रभाकर' अपना जमाना आप बनाते हैं अहले बिल । यह वह नहीं थे जिनको जमाना बना गया ॥ पहाड़ की बुलन्दियों से निकलने वाले चश्मे को भला कौन रास्ता देता है। कौन उनके लिए सड़कें बनाता है ? कोई भी तो नहीं। वह तो खुद ही गाता, मुस्कराता और पहाड़ की चट्टानों को चीरता, अड़चनों को दूर करता हुआ, अपना रास्ता बनाता चलता है। वह तो जिघर से निकल गया उधर से ही आगे खुद ही उसका रास्ता साफ होता चला गया । भला पुरनूर आफताव को मशरिक की क्या परवाह ? उसने तो जिधर से ही अपना चमकता हुआ सिर निकाला वही मशरिक । इसी तरह अहले दिल भी अपना जमाना खुद बनाया करते हैं । वे जमाने के मोहताज नहीं हुआ करते कि जमाना आए और उन्हें बना जायें। बल्कि वह तो जमाने के तेज से तेज चलने वाले धारे को, अपने आहनी इरादों से मोम की तरह मोड़ दिया करते हैं । ऐसे ही अहले दिल, उर्दू शायर के शब्दों में मस्ती के साथ गुनगुनाया करते हैं । बहर में रोक दें किश्ती जहाँ, साहिल हो जाय । हम जहाँ रख दें कदम, बस वही मंजिल हो जाय ॥ इस पाक गंगा और बुलन्द हिमालय के देश में, हजारों-लाखों हस्तियाँ कुछ ऐसी भी हो गुजरी हैं जिनका दिल गंगा की तरह पाक-साफ और अभ्र हिमालय की तरह मजबूत और बुलन्द था । श्रद्धेय जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज जो अब मजी की एक आला कहानी हस्ती बन चुके हैं, वह ऐसे ही पाक-साफ और बुलन्द इरादों के इन्सान थे । उन्होंने जमाने का इन्तजार नहीं किया कि वह उनको बनाये, बल्कि अपने जमाने को अपनी जिन्दगी को, खुद अपने ही बलबूते पर अपनी ही हिम्मत पर, अपने ही पाक-अमल और सही इल्म के बजूद पर, उन्होंने बुलन्द से बुलन्द बनाया । जैन धर्म दिवाकर दरअसल एक आला हिम्मत और सच्चे मर्द थे । पर हकीकत एक ऐसे मर्द ; जो अपने आहनी इरादों एवं फौलादी जज्बातों और कुब्बतों से जमाने तक को ही बदल डाले । उसे नया रंग ही अपने औसाफ से दे डाले । जमाने के तेज से तेज चलने वाले धारे को उन्होंने एकदम मोड़ कर एक नया रूप दिया। एक नई दिशा एक नई शिक्षा-दीक्षा दी । त्याग, संयम बाअमल इल्म और रूहानी जज्बातों को अपनी जिन्दगी का एक मकसद ही बना लिया था । जमाने ने उनको नहीं, बल्कि उन्होंने जमाने को बदला । एक उर्दू शायर के शानदार लफ्जों में For Private & Personal Use Only को बबल देते हैं ॥ लोग कहते हैं, बदलता है जमाना अक्सर । मर्द वह है, जो जमाने जवानी में ही बा-अमल फकीरी की राह पकड़ ली थी और मुश्तैद कदमों से वे अपनी रूहानी मंजिल की जानिब बढ़ चले थे। सच्ची दरवेशी तो दिवाकरजी महाराज की रूहानी जिन्दगी का एक जुज ही बनकर रह गई थी । वह सच्ची फकीरी जिसके सामने दुनियावी ऐशो www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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