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: ३६१ : संस्कार-परिवर्तन, सुसंस्कार निर्माण में योगदान श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
ने बताया कि पूज्य दिवाकरजी महाराज ने अपने धर्मोपदेश द्वारा राजकुमारीजी के सम्पूर्ण परिवार का उद्धार कर दिया, कुसंस्कारों को दूर कर नवीन सुसंस्कारों का संचार किया, इसलिये जैन साधुओं के प्रति उनकी अत्यन्त श्रद्धा है । वे हैदराबाद से सिकन्दराबाद दर्शन हेतु ही आई थीं ।
डूंगला ( राज० ) में श्री माणकचन्द जी दक थे । वे बड़े जिद्दी एवम् व्यसनी थे । उन्हें समझाने का साहस सामान्यतया नहीं होता था । लेकिन पूज्य गुरुदेव के व्याख्यानों ने केवल उनके व्यसन ही नहीं छुड़ाये वरन् संयमी साधु बना दिया । वे तपस्वी माणकचन्दजी महाराज बन गये ।
पूज्य श्री दिवाकरजी महाराज के उपकारों को लिपिबद्ध करना अत्यन्त दुष्कर है । उन्होंने संस्कार परिवर्तन एवं सुसंस्कार निर्माण में जो कार्य किया है वह अन्यत्र देखा जाना सम्भव नहीं है । जीवन में संस्कारों का अत्यन्त महत्त्व है, सुसंस्कारों से जीवन बनता है, तो इसके अभाव में जीवन पतन के गर्त में जा गिरता । पूज्य गुरुदेव ने ऊँच-नीच कुलों में, निर्धन - धनपति परिवारों में सभी क्षेत्रों में धर्म का जयघोष कर दिया। कहा भी है
धुन के पक्के कर्मठ मानव, जिस पथ पर बढ़ जाते हैं । एक बार तो रौरव को भी, स्वर्ग बना दिखलाते हैं ॥
वास्तव में हमारे चरित्र नायक भी घुन के धनी थे । विषम परिस्थितियों में जन्म लेकर, प्रतिकूल वातावरण में रहकर भी उन्होंने परिस्थितियों को परिवर्तित कर दिया । उन्होंने हत्यारे, चोर, दस्युराज, हिंसक, शराबी, जुआखोर, तस्कर, शोषक, व्यसनी दुराचारी आदि सभी प्रकार के कुसंस्कारों से परिपूरित मानव के वेश में दानवों को संस्कारित कर दानव से मानव ही न बनाया, वरन् कइयों को देवता भी बना दिया ।
धन्य ऐसे महापुरुष, जिन्हें हर समाज आज याद करता है । अछूतों और राजा-महाराजाओं को बदलने में निःसन्देह, महाराजश्री ने अद्वितीय कार्य किया ।
|| जय जैन जगत दिवाकर |
पतासज्जनसिंह मेहता
कानोड़ ( राजस्थान) PIN No. 313604
क्या सेवा करें ?
एक दिन महाराणा फतहसिंहजी ने अपने निकटतम सलाहकार कारूलालजी से पूछा - कारू ! महाराज साहब के लिए क्या खर्च करें ? वे तो कुछ लेते ही
नहीं हैं । गतवर्ष एक स्वामीजी का चौमासा कराया था, थे । ति के माल घुटते थे । हजारों रुपये खर्च हो गये साहब के लिए तो एक पैसा भी खर्च नहीं ? इनकी सेवा क्या करें ...?
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१०० साधु साथ में
और इन महाराज
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- केवल मुनि
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