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श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
: ३६३ : दृढ़ निश्चयी पथ-प्रदर्शक सन्त
इशरत कुछ भी औकात नहीं रखते उन्होंने सच्चे यकीन के साथ हासिल की थी। उर्दू शायर भी इसी बात को इस तरह कह रहा है
यकी पैदा कर ऐ बन्दे, यकी से हाथ आती है ।
वह दरवेशी जिसके सामने झुकती है मजबूरी ॥ फकीरी का पाक जामा उन्होंने दिल से पहना था। इसी से तो उम्र भर आपने तह-दिल से निभाया भी और खूब शानदर ढंग से निभाया। तभी तो दुनिया आज उन्हें अपना रहबर मानती है, उनको खुशी से सिजदा करती है, सिर झुकाती है और उनका नाम लेना बाइसे-फख समझती है। वह फकर जिसकी शान के सामने, शाने-सिकन्दरी भी कोई चीज नहीं है। वह फकर जिसके मुकाबले में, तख्तो ताज लश्करो-सिपाह, मालो-जर, दुनिया की सब नेमते हेज ठहरती है।
जिस प्रकार का मालिक शाहों का शाह है और बादशाहों का बादशाह । वह फकर श्रद्धय श्री चौथमलजी महाराज की जिन्दगी में लाहन्तिहा मौजूद था। वही फकर जिसकी तारीफ में शायर कह रहा है
निगाहें फकर के सामने, शाने सिकन्दरी क्या है ? खिराज की जो गदा हो, वह कैसरी क्या है? फकर के है मौज जात, तख्त-ताज-लश्कर व जिख सिपाह । फकर है मीरो का मीर; फकर है शाहों का शाह ॥ न तस्तो ताज में है, न लश्करो जरो सिपाह में है।
जो बात मर्दे-कलन्दर की बारगाह में है ॥ परम श्रद्धय दिवाकरजी महाराज की किस-किस वस्फ की तारीफ लिखू ? उनकी तो सारी जिन्दगी ही औसाफ की कान थी ! खुशमिजाजी, जिंदादिली, खिदमतपरस्ती, नेक चलन और पाक अमल, किस-किस का अफसाना लिखने बैठं? उनके एक-एक वस्फ की तारीफ में पौधे के पौधे और दिवान के दिवान लिखे जा सकते हैं। फिर भी दो सतरें एक शायर के शब्दों में दोहरा ही देती हूँ
सखावत, शुजाअत, इबादत, रियाजत ।
हर एक वस्फ में तुझको थी काबलीयत । उनकी जिन्दगी एक महकते हुए फूल की जिन्दगी के मानिन्द थी । फूल की महक तो थोड़ी देर तक कायम रहती है । फूल के मुर्भाते-सूखते ही, उसको हस्ती भी खत्म हो जाती है, लेकिन दिवाकरजी महाराज के आसफ की खुशबू तो हमेशा-हमेशा महकने वाली खुशबू है। वह उनकी जिन्दगी के वक्त भी थी, वह उनके चले जाने के बाद आज भी है । और इसी तरह मुश्तकबिल भी उसकी महक से महकता ही रहेगा। क्या अपना, क्या पराया ? सब दिवाकरजी महाराज के औसाफ की खुशबू से मुअत्तर रहे हैं और रहेंगे। जैसा कि एक शायर ने कहा है
फूल बन करके महक, तुझको जमाना जाने । भीनी खशबू को तेरी, अपना बेगाना जाने ॥
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