________________
: ३८७ : संस्कार-परिवर्तन, सुसंस्कार निर्माण में योगदान श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
संस्कार परिवर्तन
तथा
सुसंस्कार निर्माण में श्री जैन दिवाकर जी
का
[ कोई भी परिवर्तन, सुधार और क्रान्ति तब तक सफल नहीं, जब तक संस्कार परिवर्तन न हो । संस्कार परिवर्तन की बुनियादी क्रान्ति के सूत्रधार श्री जैन दिवाकरजी महाराज के प्रयत्नों की समीक्षा पढिए]
योगदान
अन्धकार,
घोर अन्धकार को चीर कर, निशा को नष्ट कर प्रभात के साथ भानु अपने प्रकाश से लोक को आलोकित कर देता है । दिनकर के अवतरित होने पर अन्धकार लुप्त हो जाता है । महापुरुष भी प्रकाशपुञ्ज दिवाकर की भाँति ज्ञानपुञ्ज होते हैं जो अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट कर देते हैं। यही नहीं, यह दिवाकर तो केवल दिन में ही प्रकाश प्रदान करता है, लेकिन वो दिवाकर तो अपना ज्ञान-प्रकाश सदैव प्रसारित करते हैं । महापुरुषों का जीवन संसार के प्राणियों के लिये पथ-प्रदर्शक होता है । अनेक मूर्खों की अपेक्षा एक विद्वान अत्यन्त हितकर होता है । कहा भी है
चन्दन की चुटकी भली, गाड़ी भला न काठ । चतुर तो एक ही भलो, मूरख भला न साठ ॥
Jain Education International
* श्री सज्जनसिंह मेहता
एम० ए० 'प्रभाकर'
अनन्त सितारों की अपेक्षा चन्द्र अधिक महत्त्वपूर्ण है । गाड़ीभर लक्कड़ की अपेक्षा चन्दन का एक छोटा-सा टुकड़ा अत्यन्त उपयोगी हो सकता है । अनेक मूर्ख साथियों की अपेक्षा एक विद्वान् साथी अधिक हितकर हो सकता है। इसलिए महापुरुषों का जीवन विशेष महत्वपूर्ण होता है । महापुरुषों का जीवन चरित्र पतित एवं उच्च, भोगी एवं त्यागी, अन्यायी एवं न्यायी, सामान्य एवं विशेष सभी के लिए प्रेरणादायक हो सकता है । ये महापुरुष अपने पुरुषार्थ द्वारा समाज में व्याप्त कुसंस्कारों, अन्धविश्वासों एवं रूढ़ियों को समाप्त कर नवीन संस्कारों का निर्माण करते हैं । जैन दिवाकर पूज्य श्री चौथमलजी महाराज साहब ऐसे ही महापुरुष थे, जिन्होंने एक नवीन क्रान्ति पैदा कर दी । संस्कारों के परिवर्तन में तथा नवीन सुसंस्कार निर्माण में पूज्य श्री दिवाकरजी महाराज साहब ने अपने समय में अद्वितीय कार्य किया ।
उद्यान का कुशल माली खट्ट के पौधों में अच्छे संस्कारित नारंगी, मोसम्मी आदि की कलम (आँख) लगाकर खट्टे के पौधों को नारंगी, मोसम्मी आदि में बदल देता है, देशी आम पर कलमी आम की कलम चढ़ा कर उसे भी उन्नत किस्म के आम का पौधा बना देता है, उसी प्रकार पूज्य श्री दिवाकरजी महाराज ने देश के विभिन्न वर्गों में, विभिन्न समाजों में व्याप्त कुसंस्कारों को दूर कर संस्कारों का बीजारोपण किया । उनका यह कार्य निर्धनों, अछूतों की झोंपड़ियों से लेकर राजा-महाराजाओं के महलों तक प्रसारित हुआ । उस वक्त में समाज की विचित्र दशा थी । देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, राजा-महाराजा सुरासुन्दरी के मोह में बेभान थे, सेठ
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org