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श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ
व्यक्तित्व की बहुरंगी किरणे : ३७४ :
"रंजोगम मादर तेरे इक रोज सब मिट जायेंगे। माफी मांगेंगे पिदर शरमिन्दगी उठायेंगे ॥"
x "जीगल के हिन्दी सेठजी तीगल सच्ची सारी। ईनू सदा दीदी चाहिदा पंजाबी नु उच्चारी ।।" x
x "मैं खतावारों में हैं और तू सती है वे खता। खुद शरमगारों में हूँ, तू वख्श दे मेरी खता।"
-भविष्यदत्त चरित्र परम पूज्य श्री जैन दिवाकरजी महाराज की रचनाओं की भाषा बहुत ही सरल है और पाठक के बिना किसी प्रयत्न के समझ में आ जाती है। फिर भी और अधिक रोचक बनाने के लिये यत्र-तत्र प्रचलित लोकोक्तियों का प्रयोग करके अधिक से अधिक सर्व जन सुगम बना दिया है। ये लोकोक्तियाँ न तो संस्कृत साहित्यगत उक्तियों का अनुवाद है और न उसी रूप में रखी हैं। किन्तु उन लोकोक्तियों का उपयोग किया है, जो जन-साधारण में प्रचलित हैं जैसे
* “धूप छांव से सुख दुख हैं। - पाणी पी घर पूछे जैसे।
ज्यों दाजे पै नौन । + उदर भरा उस ही घर डाका। 4 जैसी होनी होय पुरुष की वैसी उपजे बुद्ध । - कल्पवृक्ष जान के सींचा निकला धतूरा आक । 4 समय जान के करे काम वह उत्तम नर संसार । 4 उत्तम जन संसर्ग से निगुणा बने गुणा की खान । * भाग्य हीन को रत्न चिन्तामण कैसे रहे कर माई। 4 इण दिस व्याध नदी दूजी दिस ।
निज हाथों से बोय वृक्ष को कौन काटे मति मन्द । गागर को बूद
अब उपसंहार के रूप में इतना ही संकेत करना पर्याप्त है कि प्रस्तुत निबन्ध में पूज्य श्री जैन दिवाकरजी महाराज के साहित्य की अनेक विशेषताओं में से कुछेक का विहंगावलोकन मात्र किया गया है लेकिन प्रस्तुत पक्ष भी अधूरे हैं। इनके सन्दर्भ में भी बहुत से विचारों का उल्लेख किया जा सकता है । और यह तभी सम्भव है, जब उनकी प्रत्येक रचना का सांगोपांग विवेचन करने के साथ विशेष रूप से पर्यालोचन किया जाए। यहाँ तो श्री जैन दिवाकरजी महाराज के साहित्य-सागर को गागर में भरकर उसके एक बूंद के शतांश का दिग्दर्शन कराया है। यह लघु प्रयास कितना सफल रहा है ? जिज्ञासु स्वयं निर्णय करे और यदि इसकी आंशिक उपयोगिता समझी गई तो हार्दिक प्रसन्नता होगी। संक्षेप में यही निवेदन है कि पूज्य श्री जैन दिवाकरजी महाराज का साहित्य पंज संतप्त विश्व और भ्रमित मानव के लिए आन्तरिक शांति और उल्लास का प्रदाता है, कल्याणकारी मार्ग का दर्शक और शिवत्व प्राप्ति का साधन है।
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