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: ३७३ : साहित्य में सत्यं शिवं सुन्दरं के संस्कर्ता
श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
में अनुरक्त होकर विरागी को भी संसार की रमणीयता में रमण करने की सीख देता है । वह संयम मार्ग की विडम्बनाओं का वर्णन करके विचलित करने के लिये उद्यत रहता है। लेकिन सच्चा योगी इन सबसे भयभीत न होकर अपने निश्चय पर चल पड़ता है, वैसे ही जैसे सांप कांचली छोड़कर बढ़ जाता है । इन दोनों का चित्रण जिस मार्मिक रीति से पूज्य श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने 'जम्बू- चरित्र' में किया है वह अनूठा है और शास्त्रों में आये वर्णन को लोक भाषा में जैसा-कातैसा अवतरित कर देता है
तन-धन-यौवन जान अवस्था जात न लागे बार । संध्या राग फेण पाणी को ओसबिंदु संसार ॥ जन्म मरण का दुख जगत में जैसे अग्नि की झार । राग-द्वेष वश पडिया प्राणी देख रया संसार ॥ सुण म्हारी जननी दुक्कर करणी ढील न करो लगार । संयम लेने कर्म काट दूं करदू खेवा पार ॥
X X X संयम संयम जाया कांई करे रे संयम खांडा की धार रे । बावी परिषहा सहना दोहिला रे तू सुखमाल कु वार रे ॥ कुंवरा साध तणो आचार यों तो चलनो खांडा धार । मेरु गिरी उठाणो मस्तक पीणी अग्नि की झार ॥ सहेज नहीं तिवार । जाणो दुष्कर गंगा
मेण का दांत चणा चाबणा भुजा करी ने सागर तिरणां सनमुख पूर के ऊपर चढ़ नो दो दश ऊपर दोय परिषहा सहना दुष्कर भंवर भिक्षा के कारण फिरणो पर घर कई शीत उष्ण वर्षा ऋतु सहनी करना डगर बालु कवल मुख माहे मेलणो, सवाद नहीं लगार |
कार ॥
दुवार ! विहार ॥
X
X
पेले पार ॥
धार ।
X
इतनी सुनी ने बोल्या कुंवरजी रे माता यों कहणो थांरो सांच रे ।
शील रतन यो मैं धारियो रे कौन ग्रह माता काच रे ॥
इसी प्रकार के और भी कई चित्र श्रद्ध ेय श्री जैन दिवाकरजी महाराज के साहित्य में पढ़ने को मिलेंगे और यदि जिज्ञासुओं को रसास्वादन करना हो, तो उनके साहित्य को अवश्य ही पढ़ना चाहिये । प्रस्तुत प्रसंग तो उनकी झलक मात्र ही दिखाते हैं ।
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जैन दिवाकर साहित्य के भाषायी प्रयोग यद्यपि पूर्व में यह संकेत किया जा चुका है कि श्रद्धेय श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने जन-भाषा के प्रचलित शब्दों का अपने साहित्य में प्रयोग किया है । लेकिन सर्वत्र यह बात लागू नहीं होती है । तर्ज, घुन और वर्ण्य विषय की गम्भीरता के अनुरूप जन बोलियों व संस्कृत के अतिरिक्त उर्दू, फारसी, पंजावी भाषा के शब्दों का भी उपयोग किया है, जैसे
"जुवां को यों सख्त करना, कायदे के बाहर है । थी कमल - सी कमल यह क्यों आज बन गई खार है ।"
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