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| श्री जैन दिवाकर - स्मृति-ग्रन्थ
श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम : २४८ :
एक अद्भुत फूल था.
महासती मधुबाला (नंदुरबार) उपवन में हजारों फूल खिलते हैं, सभी के रंग-रूप, सौरभ अलग-अलग ! लेकिन जिस फूल की सुगन्ध सबसे अधिक लुभावनी, सबसे प्रखर होती है, जिसका सौन्दर्य सबसे विलक्षण होता है; दर्शकों का ध्यान उसी पर केन्द्रित होता है और लोग उसी फूल को लेने, देखने तथा घर में लगाने को लालायित रहते हैं।
संसार-उपवन में जिस मनुष्य में अद्भुत गूण-सौरभ परोपकार का माधर्य और शीलसदाचार का सौन्दर्य कुछ विलक्षण होता है, संसार उसी की ओर आकृष्ट होता है और उसे ही अपने शीश व नयनों पर चढ़ाता है।
जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज एक ऐसे अद्भुत फूल थे जिनमें त्याग-वैराग्य, करुणा-वात्सल्य आदि का अपार सौरभ और सौन्दर्य था, संसार उपवन के वे एक अद्भुत फूल थे। जिन्हें युग-युग तक संसार याद करता रहेगा।
ज्योतिमान गुरुदेव
-कविरत्न श्री केवल मुनि (तर्ज-चुप-चुप खड़े हो) जैन दिवाकर गुरुदेव ज्योतिमान थे। बड़े पुण्यवान थे जी बड़े० ॥टेर।। वृद्धापन में भी केहरी से ललकारते । पापियों के अधर्मों के जीवन सुधारते ॥ __ असरकारक उपदेश-रामबाण थे ।।१।। नर-नारी दौड़े आते मानों कोई माया है। मीठी-२ वाणी जैसे अमरत पिलाया है।
हिन्द के सितारे प्यारे भारत की शान थे ॥२॥ दर्शन मिले कि रोम-रोम खुशी छा गई। दया पालो! कह दिया तो मानो निधि पा गई। __त्यागी-दिव्य मूर्ति थे-करुणा की खान थे॥३॥ शांति-प्रसन्नता का स्रोत सदा बहता था। छोटे-२ गाँवों में भी मेला लगा रहता था। __ चारों ओर पूजे जाते-देवता समान थे ।।४।। जैन जैनेतर आज उनके लिये रोते हैं। सैकड़ों वर्षों में कभी ऐसे साधु होते हैं।
अग्रदूत, संघ-ऐक्य योजना के प्राण थे ॥५॥ जय-२ प्यारे गुरुदेव याद आयेंगे। तब-२ आँसुओं से नैन भर जायेंगे ।
कहाँ गये "केवल मुनि" देव वरदान थे ॥६॥
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