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________________ : २४७ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम * लक्ष्मीचन्द्र जैन 'सरोज' एम. ए. (हिन्दी - संस्कृत) श्री जैन दिवाकरजी महाराज अहिंसा-सदाचार - अपरिग्रह के प्रबल प्रचारक थे । वे वाणी के एक ही जादूगर थे, उनकी वाणी में ओज था और देशना में मानव-जीवन दर्शन था । मानव धर्म की व्याख्या का, गूढ़ तत्वों के विवेचन का उनका अपना ढंग था । उनके बहुमूल्य विचारों का प्रवेश रंक से राजा तक के हृदय में निराबाध था । उनका व्यक्तित्व और कृतित्व अपनत्व और एकतामूलक था । जैन दिवाकर नम दिवाकर जो कार्य भगवान महावीर के २५००वें निर्वाण वर्ष समारोह के सन्दर्भ में 'समणसुतं' के रूप में आचार्य विनोबा भावे की प्रेरणा से किया गया, उस कार्य की नींव की ईंट-बहुत पहले 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' के रूप में दिवाकरजी महाराज देश और समाज के सम्मुख जमा चुके थे । वे सही अर्थों में आत्मधर्मी, समाजधर्मी और राष्ट्रधर्मी साधु थे । वे साम्प्रदायिकता और जातीयता के स्थान में मानवता की ही आराधना करते थे । वे देश और समाज के निम्न चारित्रिक स्तर को अतीव उन्नत और उज्ज्वल स्तर पर देखने के लिए लालायित थे । एक वाक्य में दिवाकर वस्तुत: दिवाकर थे । श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ श्रद्धार्चन स्व० गुरुदेव जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज की लोहामंडी श्रीसंघ (आगरा) पर विशेष कृपा रही है । सन् १९३७ ई. में आपका आगरा चातुर्मास एक ऐतिहासिक प्रवास रहा । यहाँ के श्रीसंघ की भावभरी भक्ति और कर्तव्यशीलता देखकर गुरुदेवश्री ने कहा था - "लोहामंडी सोनामंडी हो जायेगी ।" गुरुदेवश्री की वह वाणी आज शत-प्रतिशत सफल हो रही है । अध्यक्ष जगन्नाथ प्रसाद जैन 000 000 000 Jain Education International गुरुदेवश्री का आगरा में दो बार पधारना हुआ । यहाँ के प्रमुख श्रावक सेठ रतनलालजी जैन (मित्तल), श्री बाबूरामजी शास्त्री और सेठ कल्याणदासजी जैन ( आगरा के भू. पू. मेयर) ने तन-मन-धन से गुरुदेव की सेवा की और धर्म प्रचार में अपूर्व उत्साह दिखाया | श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने जैनधर्म को मानव धर्म बनाने का महान् प्रयत्न किया था। उनके असीम उपकारों से न केवल जैन समाज, अपितु सम्पूर्ण मानव समाज सदा कृतज्ञ रहेगा । उस महापुरुष के प्रति हमारी कोटि-कोटि श्रद्धांजलि । श्री श्वेताम्बर स्थानकवासी जैन श्री संघ, लोहामंडी, आगरा । 000 000 ००० उपाध्यक्ष पदमकुमार जैन For Private & Personal Use Only मंत्री चन्द्रभान जैन www.jainelibrary.org
SR No.012021
Book TitleJain Divakar Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKevalmuni
PublisherJain Divakar Divya Jyoti Karyalay Byavar
Publication Year1979
Total Pages680
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size17 MB
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