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: १८५ : श्राद्ध का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
(लोकगीत की धुन पर रचित एक मेवाड़ी गीत) गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो
- श्री मदन शर्मा, शिक्षक डूंगला, (राज.) आज उजाली या रात, मारो हिवड़ो हरषात, जोड़ कुण्या कुण्या हाथ,
टेकू पगा मांही माथ, कथ गाऊँ जामण जाया केशर लाला रो। गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो॥
म्हारो हिवड़ो हरषावे,
जैन दिवाकर री शान, म्हारो मनड़ो गीत गावे,
पंडित रतना री या खान, मुरझ्या फूलड़ा ने खिलावे,
जगद् - वल्लभ गुणगान, म्हारी आंतड़िया उचकावे,
नाम चौथमलजी महान्, गीत गाऊँ आज धर्म रा रुखाला रो। निकल्यो सूरज वो तेजरा तमाला रो। गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो॥ गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो॥
सम्वत् चोंतीसा मझधार,
सोलह साल में जब आये, कार्तिक तेरस ईतवार,
व्याह बेड़ी में बँधाये, मालव देश के मंजार,
पूनमचंद लगन पठाये, हुयो नीमच में अवतार,
बरात प्रतापगढ़ में जाये, धन-धन भाग वी भूमि पर रैवण वाला रो। बाई मानकुंवर सूं फेरा लेवण वाला रो। गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो॥ गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो।
लिख्या विधाता रा लेख,
श्रीमान श्री एक सौ ने आठ, कुण फेरे जापे रेख,
गुरू हीरालालजी रो ठाट, पेर्यो साधुवां रो भेख,
जांसू करी सांठ-गांठ, छोड़ चाल्या छाती टेक,
दीक्षा लीनी बैठा पाट, छोड्यो जग छोड्यो प्रेम घर वाला रो। सम्वत् बावन्या में लोच कीनो वाला रो। गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो॥ गंगारामजी री आंख्यां रा उजाला रो॥
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