________________
श्री जैन दिवाकर स्मृति - ग्रन्थ
उन्होंने राजा से रंक तक की बात सुनी । झोंपड़ी से महल तक प्रभु महावीर के संदेश को फैलाया । जन-जन के मन को परखा। वे मानव जीवन के चिकित्सक थे । दुःख परेशानियों की व बीमारियों की औषधी उनके पास थी । लाखों का कल्याण किया, पीड़ा तथा चिन्ताएं मिटाई । भगवान महावीर ने संत की कसोटी बतलाते हुए सुन्दर एवं महत्त्वपूर्ण भाव भाषा में
कहा
श्रद्धा का अर्घ्य भक्ति-भरा प्रणाम : १८४ :
"दोहि ठाणेहि अणगारे संपन्ने अणादियं, अणवदग्गं, दोह मध्दं च उरंत संसारकतारं वीति तं जहा - विज्जाए चेव चरणेण चेव ।"
एवज्जा
-- अर्थात दो महान् तत्त्वों के माध्यम से साधक इस अनादि-अनन्त चतुर्गति रूप संसार अटवी से पार हो जाते हैं । वे हैं ज्ञान और चारित्र ।
श्री दिवाकरजी महाराज भी प्रभु के बताए हुए मार्ग पर एक दृढ़प्रहरी की भाँति चले और अपनी मंजिल को निकट की । निरतिचार चारित्र की साधना में वे हमेशा संलग्न रहे । उनकी वाणी में एक ऐसा असरकारक जादू था, चमत्कार था कि मानो साक्षात् देवदूत हो; जिनके मन वाणी, काया में धर्म का रंग रम चुका था । उनका बोलना बैठना, सोना, सोचना सब धर्म के माध्यम से होता था ।
श्रुतज्ञान के प्रगाढ़ अध्ययन - चिन्तन-मनन से वाणी को मुखरित होने की शक्ति उन्हें मिली थी । अर्थात् वे श्रुतज्ञान के ज्योतिर्धर थे ।
जहाँ-जहाँ उनके चरण पड़े वहाँ-वहाँ की वह भूमि स्वर्ग-सी बनी । धन्य बनी । जिस पर आपकी दृष्टि पड़ी वह कृत्य कृत्य बना ।
वे धर्म के दिवाकर तन की ज्योति से चाहे हमारे समाने नहीं हैं । पर उनके पवित्र जीवन की अमर ज्योति से आज भी प्रत्येक घट-घट आलोकित है ।
आज भी हम स्वर्गीय जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज की पावन गाथाएं सुनते हैं तो हृदय आनन्द से विभोर हो जाता है ।
हे हृदयेश ! हे जीवनेश ! आप मानव ही नहीं महामानव थे 1 वन्दन स्वीकार करो गुरुवर, आप तो जीवन के सृष्टा थे ॥
युगप्रवर्तक श्री जैन दिवाकरजी महाराज
* भण्डारी श्री पदमचन्दजी महाराज ( पंजाब ) जैन दिवाकर श्री चौथमलजी महाराज ने मानव समाज को सदाचार और सुसंस्कार की ओर प्रेरित करने में एक अद्भुत कार्य किया था । ऐसा कौन मानव होगा, जो उनकी चरण छाया में पहुँचा हो, उनकी वाणी सुनी हो और उसका हृदय न बदला हो । पापी से पापी और पतित से पतित मनुष्य भी उनके सम्पर्क से पवित्र बन गये, धर्मात्मा बन गये ऐसे अनेक उदाहरण सुनने में आये हैं ।
Jain Education International
जैन इतिहास के ही नहीं, किन्तु सम्पूर्ण भारतीय इतिहास के इन २५०० वर्षों में ऐसे मनस्वी, तेजस्वी प्रभावशाली संत बहुत ही कम हुए हैं जिन्होंने युग की बहती धारा को अपनी वाणी से मोड़ दिया हो । असदाचार को सदाचार व कुसंस्कारों को सुसंस्कार में बदलना वास्तव में ही युगप्रवर्तन का कार्य है । श्री जैन दिवाकरजी महाराज ने यह ऐतिहासिक कार्य किया । अतः उन्हें एक युगप्रवर्तक महापुरुष कहा जा सकता है ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org