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: १७६ : श्रद्धा का अर्घ्य : भक्ति-भरा प्रणाम
श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
वह, कालजयी इतिहास-पुरुष !
* उपाध्याय अमरमुनि, वीरायतन, राजगृह ( बिहार )
जैन दिवाकर, जगद्वल्लभ श्री चौथमलजी महाराज वस्तुतः जैनसंघ रूपी विशाल आकाश क्षितिज पर उदय होने वाले सहस्रकिरण दिवाकर ही थे । उनका ज्योतिर्मय व्यक्तित्व जैन-अर्जन सभी पक्षों में श्रद्धा का ऐसा केन्द्र रहा है कि जन-मन सहसा विस्मय-विमुग्ध हो जाता है ।
उनकी जनकल्याणानुप्राणित बोधवाणी राजप्रासादों से लेकर साधारण झोंपड़ियों तक में दिनानुदिन अनुगुंजित रहती थी। प्रवचन क्या होते थे, अन्तर्लोक से सहज समुद्भूत धर्मोपदेश के महकते फूलों की वर्षा ही हो जाया करती थी । परिचित हों या अपरिचित, गाँव हों या नगर, जहाँ कहीं भी पहुँच गये, उनके श्रीचरणों में श्रद्धा और प्रेम की उत्ताल तरंगों से गर्जता एक विशाल जनसागर उमड़ पड़ता था । न वहाँ किसी भी तरह का अमीर, गरीब आदि का कोई भेद होता था और न जाति, कुल, समाज या मत, पंथ आदि का कोई अन्तद्वन्द्व ही । उनकी प्रवचन सभा सचमुच में ही इन्द्रधनुष की तरह बहुरंगी मोहक छटा लिये होती थी ।
श्री जैन दिवाकरजी करुणा की तो साक्षात् जीवित मूर्ति ही थे। इतने पर दुःखकातर कि कुछ पूछो नहीं । अभावग्रस्त असहाय वृद्धों की पीड़ा उनसे देखी नहीं गयी, तो उनकी कोमल करुणावृत्ति ने चित्तौड़-जैसे इतिहास - केन्द्र पर वृद्धाश्रम खोल दिया | अनेक स्थानों पर पुराकाल से चली आती बलि प्रथा बन्द कराकर अमारी घोषणाएँ घोषित हुईं। हजारों परिवार मद्य, मांस, द्यूत तथा अन्य दुर्व्यसनों से मुक्त हुए, धर्म के दिव्य संस्कारों से अनुरंजित हुए । शिक्षण के क्षेत्र में बालक, बालिका तथा प्रौढ़ों के लिए धार्मिक एवं नैतिक जागरण के हेतु शिक्षा निकेतन खोले गए । मातृजाति के कल्याण हेतु कितनी ही प्रभावशाली योजनाएँ कार्यरूप में परिणत हुईं । बस, एक ही बात । जिधर भी जब भी निकल जाते थे, सब ओर दया, दान, सेवा और सहयोग के रूप में करुणा की तो गंगा बह जाती थी ।
श्री जैन दिवाकरजी महाराज शासन प्रभावक महतो महीयान् मुनिवर थे । अनेक आचार्यों से. जो न हो सकी, वह शासनप्रभावना दिवाकरजी के द्वारा हुई है । जितना विराट् भव्य एवं ऊँचा उनका तन था, उससे भी कहीं अधिक विराट्, भव्य एवं ऊँचा उनका मन था; आज की समग्र संकीर्णताओं तथा क्षुद्रताओं से परे । संघ-संगठन के शत-प्रतिशत परखे हुए सूत्रधार । सम्प्रदाय विशेष में रहकर भी साम्प्रदायिक घेराबन्दी से मुक्त | अपने युग का यह इतिहास पुरुष कालजयी है । युग-युग तक भावी प्रजा अपने आराध्य की अविस्मरणीय जीवन-स्मृति में सहज श्रद्धा के सुमन अर्पण करती रहेगी और यथाप्रसंग अपने मन, वाणी तथा कर्म को ज्योतिर्मय बनाती रहेगी ।
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जन्म-शताब्दी के मंगल प्रसंग पर उनके प्रेरणाप्रद व्यक्तित्व एवं कृतित्व को शत-शत वन्दन, अभिनन्दन !
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