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: १३६ : ऐतिहासिक दस्तावेज
श्री जैन दिवाकर-स्मृति-ग्रन्थ
॥ श्री नर्तगोपालजी ॥
Banera, Mewar राजा रञ्जयति प्रजा:
जैन मजहब के मुनि महाराज श्री देवीलालजी व श्री चौथमलजी महाराज बनेड़ा में वैशाख वदी ११ को पधारे । और श्री ऋषभदेवजी महाराज के मन्दिर में इनके व्याख्यान सुनने का सौभाग्य प्राप्त हआ। आपने नजर बाग व महलों में भी व्याख्यान दिये आपके व्याख्यानों से बड़ा ही आनन्द प्राप्त हुआ जिससे मुनासिब समझ कर प्रतिज्ञा की जाती है कि
१-पजुसणों में हम शिकार नहीं खेलेंगे। २-मादीन जानवरों की शिकार इरादतन कभी नहीं करेंगे।
३-चैत सुदी १३ श्री महावीर स्वामीजी का जन्म दिन होने से उस दिन तातील रहेगी ताकि सब लोग मन्दिर में शामिल होकर व्याख्यान आदि सुनकर ज्ञान प्राप्त करें व नीज उस रोज शिकार भी नहीं खेली जावेगी।
४-खास बनेड़े व मवजिआत के तालाबों में मच्छी आड़ वगैरह की शिकार बिला इजाजत कोई नहीं करने पावेगा। लिहाजा
नं० ६७४५ जुमले सहेनिगान की मारफत महक्मे माल हिदायत दी जावे कि वह असामियान को आगाह कर देवे कि तालाबों में मच्छी आड़ वगैरह का शिकार कोई शख्स बिला इजाजत न करने पावे। खिलाफ इसके अमल करे, उसकी बाजाप्ता रिपोर्ट करे तातील बाबत हर एक महक्मेजात में इत्तला दी जावे नीज इसके जरिये नकल हाजा मुनि महाराज को भी सूचित किया जावे । फक्त १६८० वैशाख सुदी २, ता०६ मई सन् १९२४ ई०।
द० राजा साहब के ॥श्री रामजी ॥
नकल ॥श्री हींगला जी॥
हुकमनामा अज ठिकाना कोशीथल बाकै बैशाख सुदी १५ का जवानसिंह १९८० नं० ५४
जो कि अक्सर लोग जानवरों की अपना पेट भरने के लिए 1 शिकार खेल कर जीवहिंसा के प्राश्चित्त को प्राप्त होते हैं इसलिए हस्ब am.......* उपदेश साधुजी महाराज श्री चौथमलजी स्वामी के आज की तारीख से महे हुक्मनामा खास कोशीथल व पटा कोशीथल के लिए जारी कर सब को हिदायत की जाती है कि शिकार खेल कर जीवहिंसा करने से पूरा परहेज करें। अगर कोई खास वजह पेश आवे तो मंजूरी हासिल करे। अगर इसके खिलाफ कोई करेगा और उसकी शिकायत पेश आवेगा तो उसके लिए मनासिब हक्म दिया जावेगा । इसलिए सबको लाजिम है, कि निगरानी करते रहें। और किसी के लिए बिला मन्जूरी शिकार खेलना जाहिर में आवे, तो फौरन इत्तला करें। फक्त १ बनेड़े (मेवाड़) में जो भी श्वेताम्बर स्थानकवासी साधु जाते हैं वे सब ऋषभदेवजी के मन्दिर में
ही ठहरते हैं। और चातुर्मास का निवास भी उसी मन्दिर में करते हैं। अतः व्याख्यान भी उसी मन्दिर में होता है। और सब श्रावक-गण सामायिक, प्रतिक्रमणादि दया पौषध वहीं करते हैं । अतएव 'राजा साहिब' ने श्री महावीर स्वामी के जन्म दिन तातील रखने की जैनदिवाकरजी से प्रतिज्ञा कर सब जैन लोगों को इजाजत दी कि मन्दिरजी में इकट्ठे होकर उस दिन व्याख्यान सुनकर ज्ञान प्राप्त करें।
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