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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
॥ श्री रामजी ॥
जैन सम्प्रदाय के मुनि महाराज श्री चौथमलजी ज्येष्ठ कृ० ६
को बड़ी सादड़ी में पधारे। कुछ समय व्याख्यान श्रवण होने से उत्कण्ठित X हुआ अतएव महलों में पधार व्याख्यान दिया आपके धर्मोपदेश प्रभावशाली व्याख्यान से बहुत आनन्द प्राप्त हुआ। मुनासिब समझ प्रतिज्ञा की जाती है।
(१) पक्षी जीवों की शिकार इच्छा करके नहीं करेंगे ।
मोहर छाप बड़ी सादड़ी
जीवदया और सदाचार के अमर साक्ष्य : १३५ :
(२) मादीन जानवरों की भी इच्छा करके शिकार नहीं की जायगी ।
(३) तालाब में मच्छियाँ माडाँ आदि जीवों की शिकार बिला इजाजत कोई नहीं कर सकेंगे । इसके लिए एक शिलालेख भी तालाब की पाल पर मुनासिब जगह स्थापित कर दिया जायगा ।
हु० नंबर १५६४
मुलाजमान कोतवाली को हिदायत हो कि तालाब में किसी जानवर की शिकार कोई करने न पावे। यदि इसके खिलाफ कोई शख्स करे तो फोरन रिपोर्ट करें। आज के व्याख्यान में कित नेक जागीरदार हजूरिये आदि ने हिंसा वैगरह न करने की प्रतिज्ञा की है उम्मेद है वे मुवाफिक प्रतिज्ञा पाबंद रहेंगे। नकल उसकी सूचनार्थ चौथमलजी महाराज के पास भेज दी जावे संवत् १६८२ ज्येष्ठ शुक्ला ३ ता० १२-६-१६२६
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॥ श्री रामजी ॥
जैन सम्प्रदाय के मुनिमहाराज श्री चौथमलजी के दर्शनों की अभिलाषा थी । वह आसाढ़ कृ० ६ को बंबोरे पधारे और कृष्णा १० रविवार को महाराज का विराजना बाजार में था। वहाँ पर सुबह ८ बजे से १० बजे तक श्री महाराज के व्याख्यान श्रवण किये। चित्त को आनन्द प्राप्त हुआ। मैं भी इस प्रभावशाली व्याख्यान से चित्त आग्रह होकर नीचे लिखी प्रतिशा करता है-
X
मोहर छाप
बम्बोरा
(१) मैं अपने हाथ से खाजर, पाड़ा नहीं मारूंगा, न मच्छी मारूंगा ।
(२) हमेशा के लिए इग्यारस के दिन मेरे
रसोड़े में और बंबोरे में खटीकों की दूकानें व कलालों की दूकानें बन्द पकेगा । अगता रहेगा ।
부
(३) नदी में भमर दो के नीचे से बहुवा तक कोई भी मच्छी नहीं मारेगा । (४) इग्यारस के रोज बंबोरे में ऊँट पोठी नहीं लादने दिये जायेंगे ।
मांस नहीं बनेगा। न ही खाऊंगा। रहेंगी व कुम्हारों के अवाड़ा नहीं
(५) आपका बंबोरे में पधारना होगा उस रोज व वापिस पधारना होगा उस रोज अगता पलेगा यानी खटीकों की, कलालों की दूकानें बन्द रहेंगी व कुम्हार अबाड़ा नहीं पकावेगा । वगैरहवगैरह |
(६) सात बकरे अमरिये किये जायेंगे |
ऊपर लिखे मुजिब प्रतिज्ञा की गई है और मेरे यहाँ कितनेक सरदार वर्गराओं ने भी प्रतिज्ञा की है जिसकी फेहरिस्त उनकी तरफ से अलग नजर हुई है । इति शुभम् सं० १९८२ अषाढ़
कृष्णा १० ।
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