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श्री जैन दिवाकर स्मृति ग्रन्थ
स्मृतियों के स्वर : १२० :
अफीम भी गुड़ बन गया.
* गणेशमुनि शास्त्री
मानवता के महा मसीहा, जैनदिवाकर संत महान् । सर्व हिताय सुखाय विरति का, जीवन जीया त्याग-प्रधान ॥ झोंपड़ियों से महलों तक की, जिनको श्रद्धा प्राप्त हुई । बनकर वही अनन्त लोक में, कीर्ति रूप में व्याप्त हुई ||
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अफीमची ने कहा सेठ से, पैसे लो दो मुझे अफीम । किसे चाहिये ? कारण बतला, फिर हम देंगे तुझे अफीम || रोगी को देते हैं देते - अफीमची को कभी न हम । गुस्सा करके चला गया वह झूठा करता हुआ अहम् || लाइसेन्स शुदा नर ही कर सकता था इसका व्यापार । रखा सेठ के पास पुराना, जिससे कुछ करते उपकार ॥
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कोटा जाते हुए पधारे, सुवासरा - मंडी में आप | जैन दिवाकर संत चौथमलजी का भारी पुण्य प्रताप || मिश्रीमल जी ही मुखिया थे, इन ने ही सब किया प्रबन्ध । साधार्मिक सेवा से मिलता, धर्मोत्साह अपूर्वानन्द || X X
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आया हुआ पुलिस इन्स्पेक्टर, कभी जाँच के लिए यहाँ । अफीमची बदला लेने को, पहुँच गया है तुरत वहाँ ।। सेठ अफीम बेचता है पर, लाइसेन्स न उसके पास । देखो, चलो, अभी पकड़ा दूं, जो न करो मेरा विश्वास ।। अपनी उन्नति हो जाएगी, जो पकडूंगा ऐसे केस । अफीमची को साथ ले लिया, और ले लिए पुलिस विशेष ||
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कहा इन्स्पेक्टर ने आकर, हमें तलाशी लेनी है । कहा सेठजी के लड़के ने हमें तलाशी देनी है ॥
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