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: १२१ : अफीम भी गुड़ बन गया
| श्री जैन दिवाकर-स्मृति-दान्य
हम न अफीम बेचते केवल, गुड़ ही बेचा करते हैं। किसी इन्स्पैक्टर से हम, नहीं कभी भी डरते हैं ॥ लगे तलाशी लेने लेकिन, कहीं न आई नजर अफीम । रोग नाड़ में पकड़ा जाये, तो देता है दवा हकीम ।।
गये हुए थे सेठ कथा में, और जहाँ बनता भोजन । घटनास्थल पर जो देखा वह, कहा किसी ने जा फौरन ।। सेठ गये गुरुदेव पास में, लेने अन्तिम मंगल पाठ । स्थिति बतलाकर बोले गुरुवर ! भय ने मुझको खाया काट । गुरु बोले सब अच्छा होगा, बैठो गिनो मन्त्र नवकार । इससे बढ़कर और न कोई, हो सकता दुख में आधार ।।
जिनमें भरी अफीम पुलिस को, नजर आ रहा गुड़ ही गुड़। लगी सफलता हाथ नहीं जब, मन ही मन वे रहे सिकुड़ ।
आई गंध अफीम को, किन्तु न मिली अफीम । फैल हो गई पुलिस ने, जो सोची थी स्कीम ।। क्षमा याचना कर गये, बोल रहे सब लोग। गुड बन गया अफीम का, देखो मन्त्र प्रयोग ।।
सुना सेठ ने सारा किस्सा, बोला श्रीगुरुवर की जय । उठा जाप से गुरु-चरणों में, झुक गया, रहा न कुछ भी भय ।। गुड़ कैसे बन गया बताओ, रखा हुआ था जहाँ अफीम । यही धर्म का फल होता है, मीठा हो जाता है नीम ।।
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जैन दिवाकर जी के ऐसे, कितने ही हैं पुण्य-प्रसंग । "मुनि गणेश" शास्त्री देता है, इनको नव-कविता का रंग ॥
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