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श्री जैन दिवाकर- स्मृति-ग्रन्थ
बार हो गया था; गुरुदेव पधारे तब एक लड़का हुआ । उसे लालाजी ने जैन दिवाकरजी महाराज के चरणों में डाल दिया। महाराज साहब ने मांगलिक सुनाई । वह बालक अब श्रवणकुमारजी के नाम से है, इस समय ४२ वर्ष के हैं ।
: ११६ : लोहमण्डी सोनामण्डी बन गई
जैन दिवाकरजी महाराज ने चातुर्मास उठने के अन्तिम प्रवचन में आशीर्वाद के रूप में लोहामण्डी के सोना मण्डी के रूप में परिवर्तित होने की शुभकामना प्रकट की। कुछ ही दिनों के पश्चात् वास्तव में लोहामण्डी सोनामण्डी हो गई । यहाँ के जैन समाज में धन-धान्य की बृद्धि होती ही चली गई ।
आगरा के चातुर्मास में ही लाला फूलचन्दजी जैन कानपुर निवासी तथा चौ० किशनलालजी कानपुर ने कानपुर में चातुर्मास की विनती की। कानपुर में चातुर्मास हेतु वहाँ जैन भवन की भी व्यवस्था नहीं थी और न अपने भाइयों के घर ही थे । यह विनती व्यक्तिगत आधार पर थी । यह विनती दिवाकरजी महाराज ने सेठ रतनलाल जैन तथा लोहामण्डी के भाइयों से सलाह करके स्वीकार कर ली । चातुर्मास के पश्चात् ही हाथरस से होते हुए शिष्य मण्डली के साथ कानपुर पधार गये । हाथरस में श्रीचन्दन मुनिजी महाराज की दीक्षा धूमधाम से हुई ।
मार्ग में जैनधर्म का उपदेश देते हुये दिवाकरजी महाराज ने लछमनदास बाबूराम की धर्मशाला में चातुर्मास मनाया। जोकि श्री फूलचन्दजी की ही धर्मशाला थी । इस कानपुर के चातुर्मास में निर्ग्रन्थ प्रवचन सप्ताह का भी कार्यक्रम बड़े उत्साह के साथ मनाया गया । लाला फूलचन्दजी ( कानपुर निवासी) ने स्वयं अपने आप ही पूरे चातुर्मास का व्यय वहन किया और ठहरने व भोजन का ऐसा प्रबन्ध किया कि स्थानकवासी जैन समाज के लिये एक आदर्श उपस्थित किया । जिसकी प्रशंसा दिवाकारजी महाराज के दर्शनार्थ आने वाले लोगों ने मुक्त कंठ से की। उसी समय जैन दिवाकरजी महाराज की प्रेरणा से जैन भवन की स्थापना की गई । लाला फूलचन्दजी जैन ने भवन बनाने के लिये अपना बहुत बड़ा भवन दे दिया जोकि "माता रुक्मिणी जैन भवन" खोआ बाजार, कानपुर के नाम से प्रसिद्ध है तथा साधु व साध्वियों के समय-समय पर चातुर्मास होते रहते हैं। एस० एस० जैन संघ की स्थापना भी उसी चातुर्मास में हुई थी जिसकी व्यवस्था सुचारु रूप से अब तक चल रही है ।
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बाहुबलि सतयुग हुए, प्रथम मल्ल पहिचान । हनुमत श्री वज्रांग प्रभु, द्वितीय मल्ल सुजान । द्वितीय मल्ल सुजान, तृतीय मल्ल सुभीम है । चतुर्थ मल्ल श्री दिवाकर, विश्व श्रमण सुसीम है । - सूर्यभानुजी डांगी -
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