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संदेश
जैसे ज्योतिषियों के इन्द्र चंद्रमा आकाश में सशोभित होता है। ऐसे संघ रूपी आकाश में आनंद ऋषिजी महाराज सुशोभित होते हैं।
प्रातः काल में जैसे सहस्र किरणवाला सूर्य प्रकाशित होता है, ऐसे अनेक गुण रूपी किरणों से चतुर्विध संघ में आचार्य कहे गये हैं ।
सब पुष्पों में पारिजात अर्थात् गुलाब का फूल राजा कहलाता है ऐसे श्रमण संघ में पूज्य आनद ऋषिजी महाराज नायक कहलाते हैं।
पष्प की सौरभ से आकषित होकर रस के लोभी भ्रमर जैसे पष्पों के समीप परिभ्रमण करते हैं ऐसे ही आचार्य श्री के दर्शन और वाणी के पिपास श्रावक और श्राविकाओं के संघ आते हैं।
बगीचे में जैसे चित्र-विचित्र पुष्पों से युक्त लता सुशोभित होती है । इसी तरह से स्वपक्ष और परपक्ष में आचार्य शोभा को प्राप्त होते हैं।
ऋतुओं में जैसे वसंत ऋतु सब ऋतुओं का राजा कहलाता हैं, ऐसे ही दर्शन के ज्ञाता आचार्य संघ के नायक कहलाते हैं। ऐसे आचार्य श्री को वंदना हो।
वसंत ऋतु जैसे सड़े गले पत्तों को गिरा देती हैं और सब प्राणियों को नये पत्र पुष्पों का दान देती है।
ऐसे ही पूज्यपाद श्री आनंदऋषिजी महाराजसाहब भव्य प्राणियों के दुर्गुणों को छुड़ाकर सद्गुणरुपी पुष्प फलों का दान देते हैं।
आचार्य सम्राट श्री आनंद ऋषिजी महाराज समुद्र के सदृश है, गुणरत्नों के सागर है। धीर वीर और गंभीर है, ऐसे गूणरासी से युक्त आचार्य श्री को नमस्कार हो।
पुरुषों में सिंह सदृश आचार्य श्री की जय जय होवे। पुरुषों में उत्तम पुण्डरिक कमल के समान निर्मल, हे धर्म सारथी ! आप को बार बार धन्यवाद हो और मुझे भी जय विजय देवे ।
हे संघ के नायक ! आपको नमस्कार हो। हे श्रमण संघ के गोपाल! आपके चरण कमल में "प्रभा" बार बार वंदना करती है ।
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