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२८ )
शुभकामना
जहा य गगणमज्झे, वियासइ जोइस्सींदो चंदो। एवं संघ आयासम्मि, सोहइ आणन्दायरिओ ॥१॥ जहा य सहस्सरस्सी सूरो, पभासेइ पाउसकालम्मि । एवं चउविहसंघम्मि, गुणरस्सीए आयरिओ ॥ २ ॥ पारिजाइओ सुपुष्फं, सव्व पुप्फेसु कहइ राया। तहा समणसंघेसु, नायओ वुत्तो रिसी आणन्दो ॥ ३ ॥ पुप्फस्स मघमघाओ, रसलिच्छु भमरा परिभमन्ति । सावय सावयाणं, समूहो, दंसणलिच्छवा समागच्छन्ति ॥ ४ ॥ उज्जाणम्मि सोहइ लया, चित्तविचित्त पुप्फेसु । एवं सपक्ख परपक्खेसु, आयरिओ लहइ सोहा ॥ ५॥ रिउणं वसंतरिउओ सडरिउणं महिओ। सड्दंसणन आणन्दो, णमो आणंदायरियस्स ॥६॥ जहा वसंत रिउ पाडेइ, सडिय गलिय पत्ताणं । णव पत्तपुप्फदाणं, करेइ सव्वपाणीणं ॥७॥ एवं पुज्जपाय आणंदो, मोयइ दुग्गुण वसणाओ सुगुण गण भव्वजीवाणं, आणंदो पयच्छइ आणंदो ॥८॥ आयरिओ सिरि आणंदो, समुद्द इव गुणरयणायरो। धीरो वीरो सुगंभीरो, णमो णमो गुणरासिस्स ॥ ६ ॥ जयजय पुरिससिंहो, पुरिसुत्तमो पुरिसपुण्डरिओ। धम्म सारहिओ धन्नं, मम दिज्जउ जय विजयं ॥१०॥ णमो संघ नायगस्स, समणसंघ गोवालस्स । "पभा" वंदइ भुज्जो भुज्जो, सिरओ चरण कमलम्मि ।।११॥
--जैन साध्वी प्रभाकंवर जैन सिद्धान्त आचार्य, साहित्यरत्न
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