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[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
का सम्पादन कर आगम प्रचार में सहयोग किया। पिछले कुछ समय से तो आप पूर्ण त्यागी सा जीवन व्यतीत कर रहे थे । जैसे जैसे आपकी स्वाध्याय की रुचि रही वैसे वैसे ही आपकी गुरुभक्ति भी उत्तरोत्तर बढ़ती रही । मुनिसंघों में गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करना तथा ज्ञान देना और लेना आपने अपने जीवन का लक्ष्य बना रखा था। मुझे भी आपसे मिलने का कई बार सौभाग्य प्राप्त हुआ। मैं पत्रों में भी आपके शंका समाधानों को रुचिपूर्वक पढ़ता था। श्री मुख्तार सा० ने 'शङ्का समाधान' स्तम्भ के माध्यम से अनेक व्यक्तियों के हृदयकपाट खोले थे। पर्यायान्तर ( देवपर्याय ) में भी जहाँ तक मैं सोचता हूँ आप यथासम्भव अपनी बोधि का लाभ अन्य देवों को दे रहे होंगे।
हम पर आपके अपार उपकार हैं
* रचयिता : श्री दामोदरचन्द्र आयुर्वेद शास्त्री / रचनाकाल-१-७-७७
मान्यवर माननीय विद्वद्वर धर्मप्रेमी,
__ न्याय नीतिवान आप गुण के अगार हैं। धर्मरत्न कर्मठ कृपालु धीरवीर हैं,
विचार के विशुद्ध दुनिया के आर-पार हैं । तत्त्वमर्मज्ञ हैं, शिरोमणि सिद्धान्त के हैं,
मोह को निवार ज्ञान-गज प सवार हैं। सहारनपुर के 'रतन' को सराहैं कैसे,
हम पर आपके अपार उपकार हैं ।
जब तक तारे उदित गगन में,
सूर्य चन्द्र का रहे प्रकाश । अवनी और अम्बुधि जब तक,
जब तक गंग-जमुन का वास ॥ तब तक रतनचन्द ब्रह्मचारी,
करते रहें सदा उपदेश । हे जिनेन्द्र भगवान ! इन्हें हो,
कभी नहीं कोई भी क्लेश ॥
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