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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
प्रतिभा के प्यारे सपूत
* रचयिता : श्री मूलचन्द शास्त्री, श्रीमहावीरजी
जैन जाति के जन-जन के तुम,
ऐसे जैसे
प्रतिभा
जिनवाणी के
विद्वज्जन को मोहित थे तुम जैन
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मन-मन्दिर में चमक रहे । देव भवन पर,
स्वर्ण - कलश हों दमक रहे || के प्यारे
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सपूत,
सेवक महान 1 करते,
धर्म के प्राण
'शंका-समाधान'
की शैली,
पर तुमने अधिकार किया || नय, निक्षेप, प्रमाण आदि से,
प्रतिभा का श्रृंगार किया ॥
प्राग्रहयुक्त वचन कहीं भी,
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कभी न कहते सुने गये ॥
समाधान सब शंकाओं के,
मिलते रहते नये नये ॥
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अद्वितीय महापुरुष
* श्री बाबूलाल जैन शास्त्री, भीण्डर
माननीय मुख्तार सा० के दर्शनों का सौभाग्य मुझे प्रथम बार श्री गजपंथा सिद्धक्षेत्र पर मिला । उस समय माँगी गीजी सिद्धक्षेत्र के मैनेजर श्री गणेशलालजी के सुपुत्र श्री सूरजमलजी भी मेरे साथ थे । आपसे कोई पाँच-दस मिनट ही धर्मचर्चा करने का अवसर मिला । इच्छा तो अधिक रुकने की हो रही थी क्योंकि मुख्तार सा० जैसे उद्भट विद्वान् के समागम का पुनः सौभाग्य न जाने कब मिले परन्तु उस समय अधिक नहीं रुक पाया; उसका खेद रहा । हम पूज्य १०८ श्री महावीरकीर्तिजी महाराज के दर्शनार्थ बम्बई से कार द्वारा आये थे । मुझे तो मुख्तार सा० के सान्निध्य में ठहरने की व धर्मश्रवण करने की प्रबल इच्छा थी परन्तु अन्य साथियों का साथ होने के कारण ऐसा करना मेरे लिए सम्भव नहीं हो पाया ।
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भीण्डर में सन् १९७० में जब आचार्यकल्प परम पूज्य १०८ श्रुतसागरजी महाराज के विशाल संघ का चातुर्मास हुआ तब जैन जगत् के लगभग सभी गणमान्य विद्वान् पधारे थे । पूज्य ब्रह्मचारी मुख्तार सा० भी पधारे थे । मुख्तार सा० से अध्ययन करने का उस समय हमें अच्छा अवसर मिला। इसके बाद पूज्य महाराजश्री के
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