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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
पहिले केवलज्ञानियों द्वारा प्रतिपादित बातों की महत्ता समझ सकें; क्योंकि "केवलज्ञान के द्वारा प्रतिपादित प्रत्येक सिद्धान्त सर्वथा सही है ।" यह थी हमारे महामना मुख्तार सा० की जैनधर्म के प्रचार-प्रसार की उत्कट भावना ।
कररणानुयोग उनका अपना रुचिकर विषय था । लोकालोक की संरचना कहाँ कैसी है ? और उनमें रहने वालों की प्रक्रिया, व्यवस्था, उपलब्धियाँ क्या हैं ? इस पर आपने अनेक बार लिखा था। उनके द्वारा लिखे गये सम्पूर्ण साहित्य को प्रकाशित करने की आवश्यकता है ।
प्रेरणास्पद व्यक्तित्व
* पं० बंशीधरजी शास्त्री, व्याकरणाचार्य, बीना
माननीय स्व० ब्र० पं० रतनचन्दजी मुख्तार सहारनपुर, बहुत ही योग्य अनुभवी शास्त्रज्ञ विद्वान् थे । पृथक्-पृथक् संस्थाओंों से जो धवला, जयधवला और महाघवला ग्रन्थों का सम्पादन और प्रकाशन हुआ है उनमें आवश्यक संशोधन करने का श्रेय स्व० ब्र० पं० रतनचन्दजी को ही है ।
खानिया तत्त्वचर्चा में पुरातन पक्ष की ओर से आगम के महत्त्वपूर्ण उद्धरणों का संग्रह और उनका विश्लेषण जिस खूबी के साथ किया गया था वह सब आपके ही अनुभव और श्रम का परिणाम था ।
आपका आध्यात्मिक जीवन विद्वानों के लिए सबैव प्रेरणादायक था और रहेगा । अतः आपके प्रति श्रद्धा प्रगट करते हुए मुझे अत्यन्त हर्ष हो रहा है ।
मुख्तारजी की जैनशासन सेवा
* स्व० श्री अगरचन्द नाहटा, बीकानेर )
बातें करना सरल है । बड़े-बड़े सिद्धान्तों और आदर्शों की बातें तो बहुत से लोग करते हैं, पर उनका जीवन तदनुरूप नहीं होता। ऐसी थोथी बातों से न अपना कल्याण होता है, न दूसरों का । अतः जीवन उन्हीं का सार्थक है जिनके विचार और आचार तथा कथनी और करनी में एकरूपता हो । तभी उनका स्वयं का कल्याण होता है और दूसरों को भी वे प्रभावित कर सकते हैं। उनसे प्रेरणा प्राप्त कर अनेक व्यक्ति अपने जीवन को ऊँचा उठा सकते हैं । ऐसे ही आदर्श व्यक्तियों में श्री रतनचन्दजी मुख्तार भी एक थे । वे सादा जीवन और ऊँचे विचार के प्रतीक थे । संयम और स्वाध्याय उनका जीवन व्रत रहा । निरन्तर स्वाध्याय करते रह कर वे शास्त्रज्ञ बने । अतः अनेक लोग, अनेक प्रकार की शंकाओं का सप्रमाण समाधान उनसे पाते रहे थे । यह कोई मामूली बात नहीं है; क्योंकि, प्रश्न अनेक प्रकार के होते हैं, उनका समुचित समाधान करना साधारण पण्डित के लिये सम्भव नहीं होता । शास्त्र में जिनकी गहरी पैठ है, जिनका ज्ञान जागृत है, स्मरणशक्ति तेज है और जो निरन्तर शास्त्रों का वाचन करते रहते हैं वे ही अनेक व्यक्तियों के विविध प्रकार के प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं । श्री मुख्तार सा० ने वर्षों तक यह काम सहज रूप में किया था । विविध शंकाओं के उनके लिखे हुए समाधान अनेक पत्र-पत्रिकाओं में मैं छपते हुए देखता रहता था । जहाँ तक किसी व्यक्ति का समुचित समाधान न हो जाय, वहाँ तक प्रश्नकार का चित्त अशान्त रहता है, मन डावांडोल और शंकाशील रहता है अतः दूसरों के चित्त को शान्त और समाहित
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