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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
[ २३ स्वाध्याय ही परम तप है * ब्र० पं० विद्याकुमार सेठी, न्यायकाव्यतीर्थ, कुचामन सिटी
स्वर्गीय ब्रह्मचारी पण्डित रतनचन्दजी मुख्तार साहब के विषय में क्या लिखू। अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी होने के साथ-साथ आप देशव्रती भी थे। इन्होंने वर्तमान में उपलब्ध समस्त द्रव्य श्रुत का सांगोपांग पालोड़न किया था । मैं क्या, पूज्य आचार्य १०८ श्री शिवसागरजी, पूज्य मुनि श्री श्रुतसागरजी महाराज आदि भी इनका विशेष सम्मान करते थे। 'नहि स्वाध्यायात्परं तपः' उक्ति का आपने जीवन भर निर्वाह कर कर्मों की अपूर्व निर्जरा की।
स्वर्गीय मुख्तार सा० की स्मृति में ग्रन्थ प्रकाशित हो रहा है, मैं इस सत्प्रयास की भूरि-भूरि प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकता।
स्याद्वाद शासन के समर्थ प्रहरी * ब्र० पं० सुमेरुचन्द्र दिवाकर, शास्त्री, न्यायतीर्थ; सिवनी (म० प्र०).
श्रीमान् ब्रह्मचारी सिद्धान्तभूषण, सिद्धान्ताचार्य स्व० रतनचन्दजी सहारनपुर वालों ने अपने परिश्रम पूर्वक सम्पादित आगम-परिशीलन द्वारा जिनवाणी का गम्भीर रहस्य हृदयंगम किया था। उन्होंने स्याद्वाद शासन के समर्थ प्रहरी के रूप में एकान्तवादी साक्षर दस्युवर्ग से धार्मिक समाज का संरक्षण सोत्साह सम्पन्न किया था।
वे निर्भीक, निःस्वार्थ, निर्लोभ, सच्चरित्र तथा सहृदय सत्पुरुष थे ।
ऐसे चरित्रसम्पन्न प्रतिभाशाली विद्वान् की स्मृति में प्रकाशित होने वाले ग्रन्थ के प्रशस्त कार्य की मैं हृदय से अनुमोदना करता हूँ।
मूक विद्याव्यासंगी * ब्र० कपिल कोटड़िया, हिम्मतनगर
___स्वर्गीय वयोवृद्ध पण्डित रतनचन्द मुख्तार के सीधे-सादे व्यक्तित्व को देखकर जब भेंटकर्ता को यह परिचय दिया जाता कि ये बड़े अनुभवी, शास्त्रज्ञ और करणानुयोग विशेषज्ञ हैं तो यह बात सहसा उसके मानने में नहीं आती। पण्डितजी सादगी की प्रतिमूर्ति थे, किसी प्रकार का कोई आडम्बर नहीं । अत्यन्त मितभाषी थे। उनके पास बैठकर तत्त्व-चर्चा करना जीवन का एक उत्कृष्ट लावा (लाभ) था।
पूज्य आचार्यवर शिवसागरजी महाराज के विशाल संघ का जब उदयपुर में चातुर्मास था तब मुझे उनके प्रथम दर्शन हुए थे । मैं कोई विद्वान् नहीं हूँ, एक सामान्य जिज्ञासु के नाते मैं उनसे मिला था। आर्ष परम्परा का पोषक होने के नाते वे मुझे चाहते थे और उन्होंने अन्त तक मुझ पर पूर्ण स्नेह रखा। उनके समाधानों से मन को सन्तोष होता था। सवाल समझना और उसका आगमानुकूल उत्तर देकर प्रश्नकर्ता को पूरा सन्तोष कराना यह आपकी विशेषता थी । वे वकील रहे थे अतः उनके उत्तरों में पूर्वापर सम्बन्ध रहता था और तर्कबद्धता
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