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अर्थ - 'बंध के समय ही उत्कर्षण होता है', ऐसा आगम बचन है ।
'अ हिणवदिट्ठ विबंधबड्डीए विणा उक्कढणाए दिट्ठबिसंत वड्ढीए अभावादो । ( ज. ध. १।१४६ )
अर्थ - नवीन स्थितिबंध की वृद्धि हुए बिना उत्कर्षणा के द्वारा केवल सत्ता में स्थित कर्मों की स्थिति की वृद्धि नहीं हो सकती है ।
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार :
"अट्ठहि आगरिसाहि आउअं बंधमाणजीवाणमाउअपाणस्स वड्ढिदंसणादो" ( ज. ध. १।१४६ ) अर्थ--आठ अपकर्षो के द्वारा आयुकर्म का बंध करने वाले जीवों के आयुप्राण की वृद्धि देखी जाती है । इन आगम प्रमाणों से सिद्ध होता है कि परभव श्रायु का उत्कर्षरण केवल आठ अपकर्ष कालों में आयु बंध के समय ही होता है अन्य समय उत्कर्षण नहीं होता ।
बद्ध परभविक नरकायु का प्रपकर्षण कौन कर सकता है ?
शंका- क्या प्रशस्त परिणाम वाला अथवा मिथ्यात्वी तपस्वी सातवें नरक की बाँधी आयु का छेद कर सकता है ? अथवा क्या सम्यग्दृष्टि हो नीचे की पृथ्वी की आयु का छेदकर प्रथम पृथ्वी की आयु कर सकते हैं ? स्पष्ट कीजिये ?
समाधान - मिथ्यादृष्टि तापसी सप्तमपृथ्वी की आयु को छेदकर प्रथम पृथ्वी की आयु प्रमाण नहीं कर सकता । क्षायिकसम्यग्दृष्टि या कृतकृत्य वेदकसम्यग्दृष्टि ही सप्तम पृथिवी की प्रायु का छेदनकर प्रथम पृथिवी की आयुप्रमारण कर सकता है । श्रीकृष्णजी तीसरी पृथ्वी की आयु को छेदकर प्रथमपृथिवी को नहीं कर सके । यद्यपि उनको क्षायोपशमिकसम्यक्त्व प्राप्त हो गया था और तीर्थंकरप्रकृति का बंध भी प्रारम्भ हो गया था ।
- पढाचार 15-11-75 /ज. ला. जैन, भीण्डर
उदय और उदीरणा
-- जॅ. ग. 27-8-64 / IX / ध. ला. सेठी
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शंका-उदय व उदीरणा का क्या लक्षण है ?
समाधान -- षट्खण्डागम पुस्तक ६ पत्र २१३-१४ पर कहा है-जे कम्मक्खंधा ओकडटुवक ड्डणाविप - ओगे fart gherai पाविण अप्पप्पणी फलं देतिं, तेसि कम्मक्खंधाणमुदओ ति सण्णा । जे कम्मवखंधा महंतेसु हिदि- अणुभागे अवट्टिदा ओक्कडिदूण फलदाइणो कीरंति, तेसिमुदीरणा ति सण्णा, अपक्वपाचनस्य उदीरणा व्यपदेशात् ।
अर्थ — जो कर्म
अपकर्षरण, उत्कर्षंण आदि प्रयोग के बिना स्थितिक्षय को प्राप्त होकर अपना-अपना फल देते हैं, उन कर्मस्कन्धों को 'उदय' संज्ञा है । जो महान् स्थिति और अनुभागों में अवस्थित कर्मस्कन्ध अपकर्षण करके फल देने वाले किये जाते हैं, उन कर्मस्कन्धों की 'उदीरणा' संज्ञा है, क्योंकि, अपक्व कर्मस्कन्ध के पाचन करने को उदीरणा कहा गया है। कषायपाहुड़ में इसप्रकार कहा है-अपक्व पाचणाविणा जह काल जणिदो
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