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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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वृद्धि, प्रसंख्यातभाग हानि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणहानि, असंख्यातगुणहानि) चारवृद्धि और चारहानि संभव है।
(व. खं. पु. १६ पृ. ३७३-३७४ व पृ. ३७०-३७१; गो. क. गाथा ४४१)
-जे.ग.3-10-63/IX| पन्नालाल
पुरुषवेद की अल्पतर स्थिति उदीरणा का काल
शंका-षट् खण्डागम में पुरुषवेद की अल्पतरस्थितिउदीरणाका उत्कृष्टकाल १३२ सागरोपम सातिरेक लिखा है जब कि जयधवलाकार ने १६३ सागरोपम सातिरेक लिखा है। क्या ये दो भिन्न-भिन्न आचार्यों के दो भिन्न-भिन्न उपदेश हैं।
समाधान-१० खं० पु० १५ पृ० १६० पर पुरुषवेद की अल्पतर उदीरणा का काल उत्कर्ष से साधिक दो छयासठसागर कहा है। ज.ध. पु. ४ पृ. १९-२० पर पुरुषवेद की अल्पतरस्थिति विभक्ति का उत्कृष्टकाल साधिक १६३ सागर कहा है । इस 'साधिक' का प्रमाण जयधवल में 'दो अन्तमुहर्त और तीन पल्य' लिया गया है जब कि धवल पु. १५ पृ. १६० पर, इस 'साधिक' का प्रमाण 'दो अन्तम हर्त, तीन पल्य और ३१ सागर' समझना चाहिये। इस प्रकार दोनों कथनों में कोई अन्तर नहीं है। मात्र शब्दों में अन्तर है।
-जं. ग. 3-10-63/IX/ पन्नालाल
प्रायु बन्ध / परभविक प्रायु के उत्कर्षण व अपकर्षण कब-कब होते हैं ?
शंका-आगामी भवकी आयु का बन्ध हो जाने पर उसका अपकर्षण या उत्कर्षण अष्ट अपकर्षकाल में ही होता है, या कभी भी हो सकता है ?
समाधान-परभव की आयु का अपकर्षण तो हर समय हो सकता है, 'बंधकाल में ही अपकर्षण होता है ऐसा नियम नहीं है। राजाश्रेणिक के ३३ सागरकी नरकआयु का बंध हुआ था; किंतु सम्यग्दर्शन होने पर नरक आयू का अपकर्षण होकर ८४००० वर्ष रह गई। सम्यग्दृष्टि के नरकायु का बंध नहीं होता। इसप्रकार पायुबंध के अभाव में परभविक आयु का अपकर्षण हुआ है। .
उत्कर्षण नवीनबंध के समय ही होता है। नवीनबंध हए बिना सत्ता में स्थित कर्मोंकी स्थिति की वृद्धि महीं हो सकती। कहा भी है
"बंधेण विणा तदुक्कड्डणाणुववत्तीदो" ( जयधवल पु० ५ पृ० ३३६ ) अर्थ-बंध के बिना उत्कर्षण नहीं बन सकता है । "बंधे उक्कडदि त्ति सुत्तादो।" ( ज. ध. पु० ६ पृ० ९५ ) भर्थ-'बंध के समय उत्कर्षण होता है' ऐसा सूत्र है। "बंधे उक्कडदि" ( जयधवल पु० ७ पृ० २४५ )
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