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व्यक्तित्व और कृतित्व ]
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(१) आहारकशरीर (२) माहारकशरीराङ्गोपाङ्ग (३) आहारकशरीरसंघात, (४) आहारकशरीरबंधन इन चार प्रकृतियों का सत्त्व नहीं पाया जाता है। अतः ९३ में से इन चार को घटाने पर ८६ का सत्त्वस्थान होता है मौर ९२ में से इन चार को घटाने पर ८ का सत्त्वस्थान होता है। इन ४ को न घटाकर मात्र आहारकशरीर व आहारकशरीरांगोपांग इन दो को घटाकर ९१ व ९० का सत्त्वस्थान बतलाया है, यह भी विचारणीय है ।
नरकगति की उद्वलना होने पर नरकगति, नरकगत्यानुपूर्वी, वैक्रियिकशरीर, वैक्रियिकशरीराङ्गोपाङ्ग, वैक्रियिकसंघात, वैक्रियिकशरीर बंधन इन छः प्रकृतियों को ८८ प्रकृति स्थान में घटाने से ८२ का सत्त्वस्थान होता है किंतु छः को न कम करके ४ को कम करके ८४ का सत्त्वस्थान बतलाया है । यह भी विचारणीय है।
इन सब पर विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि आहारकशरीरद्विक की उद्वेलना हो जाने पर भी आहारकशरीरसंघात व बन्धन इन दो प्रकृतियों की उद्वेलना नहीं होती है। इसीप्रकार वैक्रियिकशरीरद्विक की उद्वेलना हो जाने पर भी क्रियिकशरीरसंघात व वैक्रियिकशरीरबंधन की उद्वेलना नहीं होती है । ९१,९०,८८, ८४, ८२ इन सत्त्वस्थानों का उद्वेलना की अपेक्षा से कथन है। ६३ व ६२ का सत्त्व वाले जीव जब पाहारकद्विक की उद्वेलना कर देते हैं तब उनके क्रमशः ९१ व १० का सत्त्वस्थान होता है। यदि यह कहा जाय कि सम्यग्दृष्टि के प्राहारकशरीर की उलना नहीं होती इसलिये ९३ के सत्त्वस्थान वाले जीव के आहारकशरीर की उद्वेलना नहीं हो सकती, क्योंकि तीर्थंकरप्रकृति का सत्त्व होने से वह एक अंतर्मुहूर्त से अधिक मिथ्यात्व में नहीं रह सकता है ? ऐसा कहना सर्वथा ठीक नहीं है, क्योंकि संयम से च्यूत होकर जब वह असंयम को प्राप्त हो जाता है, उसके आहारकशरीरद्विक की उaलना प्रारम्भ हो जाती है । कहा भी है
"असंजमं गदो आहारसरीरसंतकम्मियो-संजदो अंतोमुहत्तेण उव्वेल्लणमाढवेदि जाव असंजदो जाव असंत. कम्मं च अस्थि ताव उग्वेल्लेवि।" (धवल पु० १६ पृ० ४१८ )
मर्थ-आहारकशरीर-सत्कर्मिक-संयत असंयम को प्राप्त होकर अन्तर्मुहूर्त में उद्वेलना प्रारम्भ करता है, जब तक वह असंयत है और जब तक वह सत्कर्म से रहित होता है, तब तक वह उद्वेलन करता रहता है।
इसीप्रकार वैक्रियिकशरीर की उद्वेलना हो जाने पर भी वैक्रियिकसंघात व बंधन इन दो प्रकृतियों को उद्वेलना नहीं होती है।
नामकर्म के इन सत्त्वस्थानों में नित्यनिगोदिया जीव के सत्त्वस्थानों की विवक्षा नहीं है, क्योंकि जिसने वक्रियिकशरीरचतुष्क व आहारकशरीरचतुष्क का कभी बंध ही नहीं किया उसके सत्त्वस्थान भिन्न प्रकार के होंगे।
-ज'. ग. 3-4-69/VII/ सु. श्रीतलसागर
देशघाती / सवघाती शंका-अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानावरण व प्रत्याख्यानावरण कषायों में किन किनके सर्वघाती व देशघाती स्पद्धक होते हैं ?
समाधान-अनन्तानुबन्धी कषाय, अप्रत्याख्यानावरण कषाय और प्रत्याख्यानावरण कषाय इन बारह प्रकृतियों में सर्वधाती स्पर्टकही होते हैं, देशघाती स्पर्द्धक नहीं होते क्योंकि ये सर्वघाती प्रकृतियाँ हैं।
(गो० सा० क० गाथा १९९) -जं. ग. 1-2-62/VI/ M. ला. सेठी, खुरई
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