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देशघाती / सर्वघाती
शंका-संज्वलन और नव नोकवाय में क्या सर्वघाती और देशघाती दोनों प्रकार के स्पर्द्धक होते हैं या केवल देशघाती ही होते हैं ?
[ पं० रतनचन्द जैन मुख्तार
समाधान - चार संज्वलन कषाय और नव नोकषाय यद्यपि देशघाती प्रकृतियाँ हैं क्योंकि ये सकल चारित्र का घात नहीं करती, किंतु इनमें सर्वघाती स्पर्द्धक भी हैं, क्योंकि इनमें शैल, अस्थि व दारु रूप अनुभाग पाया जाता है। गो. सा. क. १८२ ) शैल, अस्थि व दारु का बहुभाग सर्वघाती है । ( गो. सा. क. गाथा १८० ) बँटवारे में भी इनको सर्वघाती का द्रव्य मिलता है । ( गो. सा. क. गाथा १९९ )
- जं. ग. 25-1-62 / VII / ध. ला. सेठी, खुरई
चारों कषायों के उत्कृष्ट स्पर्धकों की असमानता
शंका- मोक्षमार्ग प्रकाशक नवमा अधिकार पृ. ४९९ पर लिखा है- 'अनन्तानुबन्धी आदि भेव हैं, ते तीव्र मंदकषाय की अपेक्षा नहीं हैं । जातें मिध्यादृष्टि के तीव्रकषाय होते व मंदकषाय होते अनन्तानुबन्धो आदि चारों का उदय युगपत् हो है । तहाँ च्यारों के उत्कृष्टस्पर्द्ध के समान कहे हैं।' इस पर यह शंका है कि अनन्तानुबन्धी आदि प्यारों का युगपत् उदय होते हुए भी प्यारों का विपाक भिन्न-भिन्न है फिर उनके उत्कृष्ट स्पर्द्धक समान कैसे हो सकते हैं ? आगम प्रमाण सहित उत्तर देने की कृपा करें ।
समाधान - अनन्तानुबन्धीकषाय सम्यग्दर्शन की घातक
| अप्रत्याख्यानावरणकषाय देशसंयम की घातक है । प्रत्याख्यानावरणकषाय सकलसंयम की घातक है। संज्वलनकषाय यथाख्यातचारित्र की घातक है । सम्यग्दर्शन और सम्यक्चारित्र इन दोनों में से सम्यग्दर्शनगुण महान् है, क्योंकि सम्यग्दर्शन के होने पर ही सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र होते हैं । देशसंयम, सकलसंयम और यथाख्यातचारित्र में यथाख्यातचारित्र सबसे महान् है, क्योंकि यह शुक्लध्यानपूर्वक होता है । देशचारित्र की अपेक्षा सकलचारित्र महान् है, क्योंकि सकलसंयम में सम्पूर्ण पापों का त्याग हो जाता है । महान् गुरण को घात करने वाले कर्म में अनुभाग भी महान् ( अधिक ) होना चाहिए । कहा भी है— ' देशसंयम के घाती अप्रत्याख्यानावरणकषाय के अनुभाग से प्रत्याख्यानावरणकषाय का अनुभाग यदि अनन्तगुणा न हो तो वह देशसंयम से अनन्तगुणे सकलसंयम का घाती नहीं हो सकता' ( जयधवल पु. ९ पृ. ८७ )
यद्यपि मिथ्यात्वादि सब कर्मों के स्पर्धक जघन्य से उत्कृष्ट तक बिना प्रतिषेध के हैं तो भी उन सबके अन्तिमस्पर्धक समान नहीं हैं जैसा कि महाबन्ध व जयधवल में कहा गया है - मिध्यात्व के उत्कृष्टस्थान शैलसमान अन्तिम स्पर्धक से अनन्तानुबन्धी लोभ का अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणाहीन है। उससे अनन्तानुबन्धीमाया का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेष होन है । उससे अनन्तानुबन्धी क्रोध का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है। उससे अनन्तानुबन्धीमान का अंतिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है । उससे संज्वलनलोभ का अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणाहीन है। उससे संज्वलनमाया का अंतिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है। उससे संज्वलन क्रोध का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है । उससे संज्वलनमान का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है। उससे प्रत्याख्यानावरलोभ का अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणाहीन है। उससे प्रत्याख्यानावरणमाया का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है । उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोध का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है । उससे प्रत्याख्यानावरणमान का अन्तिम अनुभागस्पर्धक विशेषहीन है । उससे प्रत्याख्यानावर लोभ का अन्तिम अनुभागस्पर्धक अनन्तगुणाहीन
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